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August 3, 2025

देश में सरकारी बैंकों के निजीकरण के खिलाफ दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन, किसान संगठनों और राजनीतिक दलों का समर्थन

देश में सरकारी बैंकों को निजीकरण के "खतरे" से बचाने की लड़ाई में ट्रेड यूनियन, किसान, राजनीतिक दलों ने बैंक अधिकारियों के साथ एकजुटता जाहिर की।

देश में सरकारी बैंकों को निजीकरण के “खतरे” से बचाने की लड़ाई में ट्रेड यूनियन, किसान, राजनीतिक दलों ने बैंक अधिकारियों के साथ एकजुटता जाहिर की। बैंक कर्मियों की भारत यात्रा मंगलवार को दिल्ली के जंतर मंतर पर समाप्त हुई। इसमें सरकार को चेताया गया कि अगर सरकार ने अपने निजीकरण के निर्णय को वापस नहीं लिया तो आंदोलन और तेज़ होगा।
सरकारी बैंकों के निजीकरण के विरोध में बैंक अधिकारियों के सबसे बड़े संगठन ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन (AIBOC) के आह्वान पर ‘बैंक बचाओ, देश बचाओ’ अभियान के तहत देश के अलग-अलग राज्यों में पैदल मार्च किया गया और रैलियाँ निकाली गईं। बैंक बचाओ, देश बचाओ अभियान के तहत भारत यात्रा पर निकले बैंकरों ने मंगलवार 30 नवम्बर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर बड़ा विरोध प्रदर्शन किया। इसके बाद AIBOC की ओर से जो जन जागरूकता अभियान 24 नवंबर से भारत यात्रा के साथ शुरू हुआ था, आज उसका समापन दिल्ली में किया गया।
बैंक कर्मियों ने बैंक के निजीकरण के खिलाफ आवाज उठाई। इनका कहना है कि सरकार संसद में जो बिल लाने जा रही है उससे बैंकों के निजीकरण का रास्ता साफ होगा और रोजगार के अवसर कम होंगे। साथ ही किसानों, छोटे व्यवसायियों, स्वयं सहायता समूह समेत कमजोर वर्गों के लिए ऋण सुविधा भी लगभग खत्म हो जाएगी।
आपको बता दें कि केंद्र सरकार दो सरकारी बैंकों का निजीकरण करने की बड़ी तैयारी कर रही है। इसी के चलते संसद के इस शीतकालीन सत्र में बैंकिंग कानून संशोधन विधेयक लाया जा सकता है। इससे सरकार को बैंकिंग नियमों में बदलाव करने का अधिकार मिल जाएगा। वहीं जिन दो बैंकों का निजीकरण करने के तैयारी चल रही है, उसका भी रास्ता साफ़ हो जाएगा। ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन (एआईबीओसी) ने सरकार की ऐसी कोशिशों का विरोध करते हुए 30 नवंबर से संसद सत्र के दौरान दिल्ली में बड़ा धरना प्रदर्शन किया।

प्रदर्शनकारियों के अनुसार, सरकारी बैंकों के प्रशासन को निजी हाथों में सौंपने से निश्चित रूप से सार्वजनिक बैंकिंग कर्मचारियों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी, लेकिन इस कदम से आम जनता को सबसे ज्यादा नुकसान होगा। इस बार, केंद्र ने संसद में बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 नाम का एक विधेयक पेश करने का फैसला किया है, जिसमें मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, सार्वजनिक बैंकों में न्यूनतम सरकारी होल्डिंग को 51 प्रतिशत से 26 प्रतिशत तक कम करने का प्रस्ताव करने की संभावना है।
यदि नए विधेयक संसद में पारित हो जाता है, तो इस कदम से इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के पहले निजीकरण की संभावना होगी। दोनों में, केंद्र के पास वर्तमान में 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी है। एआईबीओसी की महासचिव सौम्या दत्ता ने बताया कि बैंक अधिकारियों के अभियान ने महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार को कवर किया, जहां राज्यों की राजधानियों में प्रदर्शन हुए और पर्चे बांटे गए।
दत्ता ने कहा कि देश में लगभग 120 करोड़ ग्राहकों को वर्तमान में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा बैंकिंग सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि अगर निजीकरण किया जाता है, तो ये बैंक कई लोगों के वित्तीय हितों की सेवा नहीं कर पाएंगे। भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछे जाने पर, बैंक अधिकारियों के नेता ने देश में बैंकों की “पूर्ण हड़ताल” की ओर इशारा किया। दत्ता ने कहा कि हम केंद्र पर दबाव बनाने के लिए चुनावी राज्यों में अपने अभियान को तेज करने की भी योजना बना रहे हैं।
सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) के महासचिव तपन सेन ने मंगलवार को प्रदर्शन कर रहे बैंक अधिकारियों को संबोधित किया और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की ओर से उनके साथ एकजुटता व्यक्त की। उन्होंने अपने भाषण के दौरान अधिकारियों से कहा, “देश के मेहनतकश लोगों के सभी वर्ग बैंकों के निजीकरण के खिलाफ आपकी लड़ाई में आपके साथ आएंगे।” उन्होंने कहा कि आगामी बजट सत्र के दौरान दो दिवसीय आम हड़ताल है, जिसमें यह मुद्दा भी उठाया गया था।
अधिकारियों को अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) के विजू कृष्णन ने भी संबोधित किया, जिन्होंने केंद्र सरकार से बैंक के निजीकरण के प्रस्ताव को वापस लेने का आग्रह किया, उसी तरह जैसे कि विवादास्पद कृषि कानून अब निरस्त कर दिए गए हैं। एआईकेएस संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) का एक घटक है, जो किसानों के आंदोलन का नेतृत्व कर रहा है। मंगलवार को प्रदर्शन में शामिल होने वालों में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के नेता भी शामिल थे। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने पूछा कि-न तो लोग, न ही कर्मचारी, फिर बैंकों के निजीकरण से किसे फायदा होगा।

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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