बहुगुणा ने दिया था धारा के विरुद्ध तैरने का पैगाम, ग्राफिक एरा ने 2012 में नवाजा डॉक्टर ऑफ साईंस उपाधि से
चिपको आंदोलन के जरिये पूरी दुनिया को वृक्षों और पर्यावरण से प्रेम का पैगाम देने वाले पद्म विभूषण सुंदर लाल बहुगुणा मानते थे कि धारा के विपरीत तैरने वाले ही इतिहास रचते हैं। ग्राफिक एरा में उन्होंने नई पीढ़ी को यही संदेश दिया था। ग्राफिक एरा के अध्यक्ष डॉ. कमल घनशाला ने पद्म विभूषण बहुगुणा को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि दुनिया ने पर्यावरण के हक में आवाज बुलंद करने वाली एक महान विभूति को खो दिया है।
शुक्रवार को दुनिया से विदा हो गया पर्वावरण गांधी
गौरतलब है कि जानेमाने पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का 94 वर्ष की उम्र में शुक्रवार 21 मई की दोपहर निधन हो गया था। कोरोना पीड़ित होने के कारण उनका एम्स ऋषिकेश में इलाज चल रहा था। पिछले काफी समय से वे बीमार भी थे। बिस्तर पर ही उनका घर पर इलाज चल रहा था।
वर्षीय बहुगुणा को कोरोना संक्रमित होने के बाद बीती 8 मई को एम्स में भर्ती किया गया था। बिस्तर पर रहने के कारण उन्हें बेड सोर भी हो गया था। बहुगुणा वह सिपेप पर थे और उनका ऑक्सीजन लेवल 86 प्रतिशत पर था। चिकित्सक भरसक प्रयास करते रहे, लेकिन उन्हें बचा नहीं सके। 21 मई की दोपहर 12 बजकर पांच मिनट पर उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। पर्यावरण को स्थाई सम्पति माननेवाला यह महापुरुष ‘पर्यावरण गाँधी’ के नाम से जाना जाता है।
डॉक्टर ऑफ साईंस की मानद उपाधि से अंलकृत
पर्यावरणविद पद्म विभूषण सुंदर लाल बहुगुणा को 17 अप्रैल, 2012 को देहरादून में ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी ने पर्यावरण के क्षेत्र में अतुल्य योगदान के लिए डॉक्टर ऑफ साईंस की मानद उपाधि से अंलकृत किया था। ग्राफिक एरा के सभागार में इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट और अन्य प्रोफेशनल कोर्सों की उपाधि पाने वाले युवाओं को संबोधित करते हुए डॉ. सुंदर लाल बहुगुणा ने कामयाबी का मंत्र बताया था।
आज भी याद है युवाओं को वो भाषण
डॉ. बहुगुणा का वह भाषण आज भी सैकड़ों युवाओं को बाखूबी याद है। डॉ. बहुगुणा ने अपने संबोधन में कहा था कि धारा के विरूद्ध तैरने वालों को सफलता मिलती है और वे समाज की दिशा बदलने का काम कर सकते हैं। यह कार्य ऐसा कोई व्यक्ति नहीं कर सकता, जो प्रवाह के साथ-साथ बहता है। इसलिए व्यवस्था परिवर्तन के लिए प्रवाह के विरुद्ध तैरना आवश्यक है। ऐसा करने वाले ही इतिहास रचते हैं।
गांव की तरफ जाना भी जरूरी
उन्होंने युवाओं से शहरों की चकाचौंध में ही न खो जाने का आह्वान करते हुए कहा था कि देश के विकास के लिए शहरों के साथ ही गांव की तरफ जाना बहुत जरूरी है। डॉ. बहुगुणा का पैगाम केवल शब्दों की बाजीगरी नहीं था, बल्कि उन्होंने खुद प्रवाह के विरूद्ध तैरकर इतिहास रचा।
हम सबके बीच सदैव मौजूद रहेंगे बहुगुणा
ग्राफिक एरा एजुकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. कमल घनशाला ने डॉ. सुंदर लाल बहुगुणा के निधन पर गहन शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने तमाम सुविधाएं ठुकराकर खुद संघर्षों का रास्ता चुना और पूरी दुनिया को पर्यावरण संरक्षण की दिशा दिखाई। जीवन के आखिरी वर्षों तक वह तपस्या जैसे अंदाज में पर्यावरण सरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करते रहे। उनका निधन पूरी दुनिया की एक बहुत बड़ी क्षति है। अपने विचारों के रूप में वे सदैव हम सबके बीच मौजूद रहेंगे।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
सुन्दर लाल बहुगुणा जी को भावभीनी श्रद्धांजलि