अशोक आनन की कविता- ज़ख्म नमक छिड़क रहे हैं
ज़ख्म नमक छिड़क रहे हैं
पहाड़ भी अब दरक रहे हैं।
सागर भी अब सरक रहे हैं।
ज़ख्मों ने अब चीखकर कहा
ज़ख्म ही नमक छिड़क रहे हैं।
रह रहे हैं वहां भी ग़रीब
कहने को जो नरक रहे हैं।
देखकर पड़ौसियों को दु:खी
लोग खुशियों से पुलक रहे हैं।
दो-चार घुंघरू क्या मिल गए
पैंजनियों- से ठुमक रहे हैं। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
धूप थोड़ी-सी क्या पड़ गई
वे रंगों – से चटक रहे हैं।
गिरकर वे भी आसमान से
खजूर में अब अटक रहे हैं।
गुब्बार – से फूले पेट भी
अब रोटी को लपक रहे हैं।
ठूंठ भी अब मिलकर हवा से
पीत पात को झिड़क रहे हैं।
कवि का परिचय
अशोक आनन
जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com
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Bhanu Prakash
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।



