अशोक आनन की कविता- झांक रहा चांद

बादलों की ओट से
झांक रहा चांद।
शरमाकर धरा
निहार रही हौले से।
स्वप्न बाहर आए
नींद के डोले से।
चांदनी घर आई
दीवार को फांद।
चांदनी रास्ते में
कहीं बिटमा गई।
बादलों की बातों से
वह भरमा गई। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
वह नीचे न आ सकी
फुनगियों को लांघ।
उतरकर झील में
लगाए वह डुबकियां।
डूब – डूब जाए
रजत – देह कश्तियां।
हीर रैन पर रीझ गया
शरद का रांझ।
हीरों सी चमक रहीं
पेड़ों की पत्तियां।
हवाएं बजा रहीं
मस्ती में डफलियां
रात भर रैन नाची
घुंघरुओं को बांध।
कवि का परिचय
अशोक आनन
जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।