अशोक आनन का नवगीत- पानी हुआ फ़रार
छोड़कर बादलों को
पानी हुआ फ़रार।
धूप बिछाकर जाजिम
पसर गई धरा पर।
हवाएं भी दुबक गईं
कहीं मुंह छिपाकर।
बारिश का भी धरा से
टूट गया क़रार।
दूब सूखकर शर्म से
सिर झुकाए खड़ीं।
फसलें भी सभी
अब पीली पड़ीं।
धरा के हृदय में भी
पड़ने लगीं दरार।
नदियों का पानी भी
नदियां पीने लगीं।
सड़कें भी अब फटी
गुदड़ियां सीने लगीं।
बादल भी कहीं से
पानी लाए उधार।
दिन रूमाल से अब
रात हुईं चादर – सी।
मरहम ताल – से अब
पीर हुईं सागर – सी।
आवारा – सी ठंडी
बहने लगीं बयार।
कवि का परिचय
अशोक ‘आनन’, जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।