अर्नब के पास आका है: मेरे खिलाफ तो कैबिनेट एजेंडा लीक पर CID जांच बैठ गई थी, वरिष्ठ पत्रकार चेतन गुरुंग की आपबीती

अर्नब-अर्नब हो रहा इन दिनों खूब। मतलब अर्नब गोस्वामी। देश द्रोही किस्म के व्हाट्स एप चैट को ले के। अब जांच हो तो पता भी चले कि ये चैट वाकई बेहद गंभीर होने के साथ ही इसमें लिखे गए शब्दों के पीछे सौ फीसदी सच्चाई भी है। ये चैट इतने सनसनीखेज और देश की सुरक्षा की धता बता रहे कि जांच वाकई बैठ गई तो अर्नब को सलाखों के पीछे जाने से शायद ही कोई रोक पाए। भले बाद में जांच पूरी होने पर बेदाग छूट जाए। माना जा रहा कि जांच शायद ही होगी। दागी के पास केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के महाबली किस्म के सूरमा कंधे से कंधा मिला के खड़े हैं।
सरकार का अभी तक जांच कराने की बात भी न करना इसको साबित करते हैं। ये आरोप भले बेहद गंभीर हैं। मैंने तो CB-CID जांच झेली। वह भी विशुद्ध-खालिस पत्रकारीय मामले में। उस मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के फरमान पर, जिनके साथ वाकई हमेशा मेरे अच्छे रिश्ते रहें।
बात दशक भर पहले की है। तब निशंक मुख्यमंत्री बन गए थे। अपनी ही पार्टी के बीसी खंडूड़ी का दुर्ग ध्वस्त कर। जब वह विधायक भी नहीं थे, तब से बढ़िया संबंध थे। वह यूपी में मंत्री भी बने। फिर उत्तराखंड बना। यहाँ भी वह पहले मंत्री फिर मुख्यमंत्री बने। ये उनकी खूबी कही जाएगी कि तब तक वह कुर्सी और सत्ता की ताकत के साथ बदले नहीं या फिर बदले दिखते नहीं थे।
खंडूड़ी राज से ही APMC एक्ट (किसान इस मुद्दे पर भी बोल रहे हैं इन दिनों) को राज्य में लागू करने का मसला चल रहा था। किसी न किसी वजह से इससे जुड़ा अहम प्रस्ताव बार-बार मंत्रिमंडल की बैठक में पेश होने से रह जाता था। वैसे बीच में रोक के आपको ये बता दूँ कि इस मुद्दे पर मैं एक बार पहले भी थोड़ा लिख चुका हूँ। जिसने पढ़ा हो, उनसे इस पुनरावृत्ति के लिए माफी। मेरे कॉलम कम लोग ही पढ़ते हैं। इसलिए ये मान के लिख रहा कि अधिकांश को ये मामला पता नहीं।
अभी इस लिए लिख रहा हूँ कि अर्नब की सरकार में पैठ को ले के खूब अंगुलियाँ काँग्रेस और सोशल मीडिया में खूब लिखा जा रहा है। मुख्य धारा की कथित मीडिया भले खामोश है। APMC एक्ट पर सरकार की तरफ से लगातार बयान आते रहते थे कि हम अलां करने वाले हैं। फलां हो जाएगा। बस Act किसी न किसी वजह से रुक जाता था। खंडूड़ी तो बोलते-बोलते कुर्सी से चले गए, लेकिन निशंक सरकार ने तय कर लिया कि Act आएगा। अगले दिन होने वाली कैबिनेट बैठक में पेश होगा। अपनी पकड़ अर्नब जैसी तो नहीं लेकिन उत्तराखंड के लिहाज से तब भी ठीक थी। सभी मंत्रियों-आला नौकरशाहों से कैबिनेट और उसके एजेंडे के बारे में चर्चा हो ही जाया करती थी। उनके आधार पर ही मैंने स्टोरी लिख दी थी। मंत्रिमंडल की बैठक में इस बार कृषि-किसानों से जुड़ा ये Act पेश हो रहा।
इसमें क्या-क्या प्रावधान होंगे, ये भी लिख डाला था। तब `अमर उजाला’ में हुआ करता था। चीफ ऑफ स्टेट ब्यूरो की हैसियत थी। ये एक्सक्लूसिव खबर थी।
आम लोगों में तो नहीं लेकिन पत्रकार साथियों और उनके अखबारों में बहुत हलचल मची। सुबह अखबार बाजार आते ही। सीएम से शिकायत की कि इतनी बड़ी खबर हमको नहीं बताई। मुख्य सचिव और कुछ अफसरों की शिकायत भी की कि उन्होंने एजेंडा लीक कर दिया। कैबिनेट की बैठक दिन में शुरू हुई तो भन्नाए निशंक ने नाराजगी जताई कि अब बैठक में क्या फैसले करना। फैसले तो सब अखबार में आज छाप दिए गए हैं। पहले से।
मंत्री खामोश रहे। नाक बचाने के लिए मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव नृप सिंह नपल्च्याल को कैबिनेट एजेंडा लीक की जांच बिठाने के फरमान हाथों-हाथ जारी कर दिए। नपल्च्याल ने भी तत्काल CB-CID जांच बिठा दी। DGP ज्योति स्वरूप पांडे ने बिमला गुंज्याल (अब DIG हैं) को जांच अधिकारी बना दिया। एक दिन विधानसभा सत्र चलने के दौरान वह मेरा स्टेटमेंट लेने विधान भवन ही आईं। मैंने बता दिया कि एजेंडा के बारे में मुझे किस-किसने बताया।
नाम ऐसे थे कि उसकी पुष्टि कर पाना खुद जांच एजेंसी-अफसरों के लिए भी बहुत मुश्किल था। बिमला ने पूछा भी कि गोपन विभाग वालों ने भी तो कुछ बताया होगा। मैंने कह दिया-वे मुझसे कैबिनेट एजेंडा जैसे बड़े-गंभीर मुद्दों पर कभी बात नहीं करते। मैं भी नहीं करता। एक दिन एक इंस्पेक्टर मुझे सचिवालय में मुख्य सचिव के कार्यालय की सीढ़ियाँ चढ़ता टकर गया। कभी गढ़ी कैंट थाने में स्टेशन अफसर हुआ करता था।
सालों बाद टकराया तो मैंने यूं ही पूछ लिया। कैसे आए? वह हिचकिचाया। मैंने पूछा कहाँ पोस्टिंग हैं? उसने बताया CB-CID..मैंने उससे तुरंत कहा-तो कैबिनेट एजेंडा लीक जांच के मामले आए होंगे यहाँ। वह सकपका गया। उसको उम्मीद नहीं थी कि मुझे ये सब अंदाज होगा। फिर उसको मैंने बताया, भाई मेरा ही मामला है। वह लीक माले में पूछताछ के लिए मुख्य सचिव और अपर मुख्य सचिव (गोपन) से मिलने जा रहा था। उसको शायद एहसास नहीं था और न ही सचिवालय की ताकत का अंदाज ही था।
पता चला कि दोनों अफसरों के स्टाफ ने ही डपट के उसको चलता कर दिया। होश में तो हो। किस से पूछताछ करने आए हो, पता भी है। दिलचस्प पहलू ये है कि जिस दिन बिमला मेरा बयान ले रही थी, उसी दिन निशंक का फोन आया कि आइये कुछ बात करनी है। मैं कुछ देरी से पहुंचा तो उन्होंने पूछा कि कहाँ रह गए थे। मैंने छूट ते ही बोला। बयान दे रहा था। जांच अधिकारी को। जिसकी जांच आपने मेरे खिलाफ बिठाई है। चौंकते हुए मुख्यमंत्री ने कहा-किस मामले में? मैंने बता दिया। वह अचानक नाखुश से दिखे और तत्काल मुख्य सचिव से पूछा कि आपने जांच ही बिठा दी? मुझे एक बार पहले बताना चाहिए था। नपल्च्याल क्या बोलते। मुख्यमंत्री के हुक्म की उदूली कौन कर सकता है। बहरहाल उस जांच का क्या हुआ। खुद न मुझे पता न सरकार में ही किसी को पता है।
हाल ही में अर्नब मामला उछला तो नपल्च्याल से फोन पर ही पूछ लिया कि आखिर उस जांच का निष्कर्ष क्या रहा? पता नहीं चला। अब वह भी उस क़िस्से को भूल चुके हैं। CB-CID जांच कहाँ तक चली-किस शक्ल में बंद हो गई। अब किसी को नहीं जानता। एक किस्सा लीक से जुड़ा और है। विधानसभा के बजट सत्र से पहले कैबिनेट की बैठक में बजट प्रस्ताव पेश होना था। कैबिनेट में जो बजट पास हुआ, मैंने वह हूबहू अगले दिन अखबार में छाप दिया।
वित्त महकमे के प्रमुख सचिव तब आलोक कुमार जैन हुआ करते थे। बड़े भाई-मित्र सरीखे। खंडूड़ी राज था। उन्होंने अखबार में बजट की रिपोर्ट पढ़ी। वह समझ गए। सदन में यही बजट पेश हुआ तो विपक्ष हंगामा कर देगा। शोर मचा देगा। बजट लीक-बजट लीक। उन्होंने चतुराई-दिमाग से काम लिया। बजट सदन में मामूली संशोधनों के साथ पेश किया गया। ज्यादा करने का मौका-वक्त था भी नहीं। बस विपक्ष कुछ नहीं कह सकता था।
जैन ने बाद में बजट पास होने के बाद मुझे कहा-आपने तो फंसवा दिया था। हूबहू बजट छाप के। इसलिए थोड़ा फेरबदल करना पड़ा। उन्होंने उस मंत्री का नाम भी अंदाज से लिया। जिसने मुझे बजट की संख्या बताई थी। अंदाज उनका एकदम सही था। ऐसे नौकरशाह भी अब कहाँ हैं। खैर इस बार कोई जांच बजट लीक पर मुझे झेलनी नहीं पड़ी। इस बार शायद मेरे साथ अर्नब जैसी तकदीर थी। हालांकि जांच होती भी तो कौन सी जेल होती। मैंने कोई अर्नब थोड़ी कर दिया था। वह व्हाट्स एप चैट नहीं। खालिस पत्रकारिता थी। एक्सक्लूसिव निकाल के छापने का फर्ज था।
लेखक का परिचय
चेतन गुरुंग, गढ़ी कैंट देहरादून, उत्तराखंड
लेखक जानेमाने पत्रकार हैं। वह कई समाचार पत्रों में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। वर्तमान में वह न्यूज स्पेस के नाम से अपना वेब न्यूज पोर्टल भी निकाल रहे हैं। साथ ही वह शाह टाइम्स समाचार पत्र में उत्तराखंड के संपादक भी हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।