Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

December 23, 2024

भूपेन्द्र डोंगरियाल का काव्यगीत-आज़कल

आज़कल
झूठ ने रफ़्तार पकड़ी हो रहा है मन विकल।
घुटनों के बल ही रेंगता सच देख लो अब आजकल।।
पालने से पाँव नीचे जब तलक रखता है सच,
झूठ लौटा घूमकर जग झूमता अब आजकल।
इतने करीने से सजा है झूठ का चेहरा यहाँ,
मुफ़लिसी के दौर में सच घूमता अब आजकल।
झूठ की दौलत बढ़ी है गिन रहा वो रात दिन,
सच घुटन के बीच साँसे ढूँढता अब आजकल।
सच सुलह की बात करता झूठ माँगे न्याय अब,
है लड़ाई जीत की वह चूमता अब आजकल।
आइने के सामने चेहरा छिपाता सच यहाँ,
जोड़ता है हाथ सच मजलूम सा अब आजकल।
खिलखिलाते हैं शहर में आशियाने झूठ के,
पाई-पाई गिन रहा सच महरूम सा अब आजकल।
कवि का परिचय
नाम- भूपेन्द्र डोंगरियाल
ग्राम- बल्यूली, जनपद-अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड।
वर्तमान पता- आईटीआई कैम्पस, निरंजनपुर, देहरादून।
भूपेन्द्र डोंगरियाल उत्तराखण्ड राज्य सरकार के सेवायोजन एवं प्रशिक्षण अनुभाग में अनुदेशक के पद पर कार्यरत हैं। वर्जिन साहित्यपीठ के सौजन्य से अभी तक उनकी पाँच ई बुक्स प्रकाशित हो चुकी हैं।
मोबाइल नम्बर-
8755078998
8218370117

+ posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page