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February 23, 2025

उद्धव ठाकरे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया जवाब, शिंदे सरकार को बताया-जहरीले पेड़ का फल

सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई से पहले उद्धव ठाकरे गुट की ओर से अपना जवाब दाखिल किया गया है। ठाकरे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में दायर जवाबी हलफनामे में कहा है कि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे सरकार जहरीले पेड़ का फल है।

सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई से पहले उद्धव ठाकरे गुट की ओर से अपना जवाब दाखिल किया गया है। ठाकरे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में दायर जवाबी हलफनामे में कहा है कि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे सरकार जहरीले पेड़ का फल है। फ्लोर टेस्ट और शिंदे की नए सीएम के रूप में नियुक्ति सहित सभी घटनाएं ‘एक जहरीले पेड़ के फल’ हैं। इसके बीज बागी विधायकों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में बोए गए थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ठाकरे गुट ने कहा कि शिंदे गुट के विधायकों ने संवैधानिक पाप किया है। कहा कि एकनाथ शिंदे और बागी विधायक अशुद्ध हाथ लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। उन्होंने डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को लेकर झूठा बयान दिया। बागी विधायकों ने अपनी पार्टी विरोधी गतिविधियों को छिपाने के लिए ‘असली सेना’ के दावों के साथ चुनाव आयोग से संपर्क किया। यह समझ से परे है कि बागी विधायकों को महाराष्ट्र छोड़कर बीजेपी शासित गुजरात राज्य में क्यों जाना पड़ा? बाद में असम में बीजेपी की गोद में बैठना पड़ा। यदि उन्हें अपने पार्टी कार्यकर्ताओं का समर्थन प्राप्त था तो ऐसा क्यों किया गया? कहने की जरूरत नहीं है कि गुजरात और असम में शिवसेना कैडर नहीं था। केवल बीजेपी कैडर था जो विधायकों को पूरा साजो-सामान मुहैया करा रहा था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

साथ ही ठाकरे गुट की ओर से कहा गया है कि शिंदे ग्रुप के विधायकों ने पार्टी विरोधी गतिविधियों को सही साबित करने के लिए झूठा नैरेटिव गढ़ा है कि एनसीपी और कांग्रेस के शिवसेना के साथ गठबंधन से उनके वोटर नाराज हैं। हकीकत यह है कि ये विधायक महा विकास अघाड़ी गठबंधन में ढाई साल तक मंत्री बने रहे, पर उन्होंने कभी इस पर आपत्ति नहीं की। जिसे वो शिवसेना का पुराना सहयोगी (BJP को) बता रहे है, उसने कभी शिवसेना को बराबर का दर्जा नहीं दिया। वहीं, महाविकास अघाड़ी गठबंधन सरकार में शिवसेना के नेता को मुख्यमंत्री पद मिला। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

साथ ही कहा गया है कि जिस दिन से सरकार सत्ता में आई, इन विधायकों ने हमेशा इसका फायदा उठाया। पहले कभी उन्होंने वोटर/कार्यकर्ताओ में इसको लेकर नाराजगी की बात नहीं उठाई। अगर वो इस सरकार का हिस्सा बनने से इतने ही परेशान थे, तो पहले दिन से ही कैबिनेट में शामिल नहीं होते।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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