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March 12, 2025

माता निर्मला का जन्म शताब्दीवर्ष समारोहः सहज चैतन्य रथ पहुंचा उत्तराखंड, जानिए सहज योग और माता निर्मला के बारे में

सहज योग की संस्थापिका माता निर्मला देवी जी के जन्म शताब्दीवर्ष समारोह के अंतर्गत उनके जन्मस्थान छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) से प्रारम्भ हुआ सहज चैतन्य रथ आज उत्तराखंड में प्रवेश कर गया है।

सहज योग की संस्थापिका माता निर्मला देवी जी के जन्म शताब्दीवर्ष समारोह के अंतर्गत उनके जन्मस्थान छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) से प्रारम्भ हुआ सहज चैतन्य रथ आज उत्तराखंड में प्रवेश कर गया है। सहज योग का संदेश भारत में जन जन तक पहुंचाने के लिए “सहज चैतन्य रथ” ने हिमांचल राज्य में एक माह का सफर पूरा किया। आज पोंटा साहिब से उत्तराखंड राज्य में प्रवेश करने के बाद इस रथ में सवार प्रतिनिधियों का सहजयोग केंद्र विकासनगर के प्रतिनिधियों ने भव्य स्वागत किया।
सहज योग के स्टेट कोऑर्डिनेटर सतीश सिंघल और युवा शक्ति कोऑर्डिनेटर डॉक्टर रोमिल भटकोटी ने देहरादून प्रेस क्लब में पत्रकारों से सहज चैतन्य रथ के आगमन पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की जानकारी दी। बताया कि “सहजयोग” मानव के कल्याण के लिए वर्ष 1970 से कार्य कर रहा है एवं विश्व में 140 से अधिक देशों में इस जन जागरण के माध्यम से लाखों लोगों ने शारीरिक मानसिक एवं भावनात्मक समस्याओं से छुटकारा पा कर, अपने जीवन को वास्तव में सुखमय व आनंदमय बना लिया है। माता जी निर्मला देवी जी की ओर से सहज में ही मनुष्य में स्थित कुंडलिनी शक्ति के जागरण को सहज में ही संभव कर दिया गया। इसकी प्रचीति प्रत्येक मनुष्य अपने सूक्ष्म शरीर के नाड़ी तंत्र पर कर सकता है। कुछ दिनों के अभ्यास से ही इसका प्रभाव स्वयं ही सिद्ध हो जाता है।

उन्होंने बताया कि सहजयोग पूर्णतः निशुल्क है। सभी जाति, धर्म, संप्रदाय व आयु इत्यादि की सीमाओं से ऊपर है। कोई भी मनुष्य इसे आसानी से प्राप्त कर सकता है। अर्थात “सहजयोग” भारतीय संस्कृति के मूल सिद्धांत “सर्व धर्म समभाव” को समस्त मानव मात्र में स्थापित करने में सम्पूर्ण विश्व में कार्यरत है। आज के वातावरण में तनाव व अवसाद (डिप्रेशन) से ग्रसित मनुष्य को भी सहजयोग से पहले ही दिन से अत्यंत लाभ का अनुभव हुआ है। फिर चाहे वह किसी भी उम्र का व्यक्ति क्यों न हो। युवा वर्ग के सर्वांगीण विकास में सहजयोग पद्धति से ध्यान करने के अभूतपूर्व सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए हैं। सहजयोग विधि से ध्यान धारणा के लिए किसी प्रकार की कोई पूर्वशर्त नहीं है।

उन्होंने कहा कि इसी संदेश को समस्त भारत में जन जन तक पहुंचाने के लिए “सहज चैतन्य रथ” हिमांचल राज्य से एक माह का सफर पूरा करने के उपरांत आज 24 मई 2022 को शाम के समय पोंटा साहिब से उत्तराखंड राज्य में प्रवेश कर गया है। इसका स्वागत सहजयोग केंद्र विकासनगर की ओर से दिव्य व भव्य तरीके से किया गया। इस कार्यक्रम में देहरादून व आसपास के केंद्रों से बड़ी संख्या में सहज योगी उपस्थित रहे।
उन्होंने बताया कि 25 मई को विकासनगर क्षेत्र में सार्वजनिक कार्यक्रम के माध्यम से जन जागरण किया जाएगा। 26 मई को शाम के समय “सहज चैतन्य रथ” देहरादून के लिए प्रस्थान करेगा। जिसकी अगवानी स्वयं देहरादून सहजयोग केंद्र के द्वारा की जाएगी। 26 मई से 30 मई 2022 तक यह चैतन्य रथ, देहरादून केंद्र में रहकर विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करेगा एवं सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित करेगा।
ये हैं कार्यक्रम
दिनांक———–सार्वजनिक कार्यक्रम का स्थान
27 मई 2022——तेलपुरा मॉडल जूनियर हाई स्कूल,सेलाकुई सायं 5:00 बजे
28 मई 2022——कारमान स्कूल,ठाकुरपुर,प्रेमनगर साँय 5:00 बजे
29 मई 2022——आत्माराम धर्मशाला,किशननगर चौक साँय 5:00 बजे
30 मई2022——सिग्नेचर टावर, बी-143 नेहरू कालोनी, साँय 5:00 बजे
31 मई 2022 को यह रथ डोईवाला क्षेत्र के लिए प्रस्थान करेगा। तदुपरांत सहज चैतन्य रथ गढ़वाल के विभिन्न क्षेत्रों के लिए प्रस्थान करेगा। प्रेस वार्ता में सहजयोग के देहरादून केंद्र व जिला समन्वयक एम एस तोमर, डॉ आर के मज़ारी, डी एस चौहान, पीएस पाल, राजेन्द्र बिष्ट व श्री प्रदीप सिंह रावत मोजूद थे।
हर व्यक्ति के जीवन में बदलाव लाता है सहज योग
योग हर व्यक्ति के जीवन में नया बदलाव ला देता है। योग कई तरीके के होते हैं। इसमें एक योग ऐसा है जिसे सहयोग या सहज योग कहते हैं। इस योग को करने से इंसान की कुंडलिनी को जागृत किया जाता है। कुंडलिनी जागृत होने से शरीर के भीतर छिपी शक्ति कई गुना बढ़ जाती हैं। इससे आप मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत होते हैं। साथ ही हर तरह के रोगों से लड़ने की आपके भीतर ताकत पैदा हो जाती है। आइए हम आपको इसके संबंध में कुछ जानकारी दे रहे हैं।
माता निर्मला देवी ने की थी शुरुआत
सहयोग की शुरुआत माताजी निर्मला देवी ने 5 मई 1970 में की थी। माता जी निर्मला देवी द्वारा विकसित सहज योग मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद बताया गया है। यह मुख्य रूप से आत्म बोध एवं आत्मिक सुख की अनाभूति प्रदन करता है। माता निर्मला देवी ने भारत के कोने-कोने में जाकर इसके कैंप लगाए। लोगों को इसके प्रति जागरूक किया। अब उनके बाद अब उनके अनुयायी इसे जन जन तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। अब सहज योग 100 से अधिक देशों में कार्य कर रहा है और यह पूरी तरह से निशुल्क है और ऑनलाइन के माध्यम से भी इससे लोग जुड़ रहे हैं।
माता निर्मला के बारे में
निर्मला श्रीवास्तव विवाह पूर्व: निर्मला साल्वे) को अधिकतर लोग श्री माताजी निर्मला देवी के नाम से जानते हैं। वह सहज योग, नामक एक नये धार्मिक आंदोलन की संस्थापक थीं। उनके स्वयं के बारे में दिये गये इस वकतव्य कि वो आदि शक्ति का पूर्ण अवतार थीं, को 140 देशों में बसे उनके अनुयायी, मान्यता प्रदान करते हैं। निर्मला देवी का जन्म 21 मार्च 1923 को भारतीय राज्य मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में एक ईसाई परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रसादराव साल्वे तथा माता का नाम कोर्नेलिया साल्वे था। निर्मला देवी के अनुसार उनका परिवार शालिवाहन राजवंश से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित था।
जन्म के समय उनके निष्कलंक रूप को देखकर उन्हें ‘निर्मला’ नाम दिया था तथा बाद के वर्षों में वे अपने अनुयायियों में श्री माताजी निर्मला देवी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। उनके मातापिता ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाई थी। उनके पिता के महात्मा गाँधी के साथ नजदीकी संबंध थे। वे स्वयं भी भारत की संविधान सभा के सदस्य थे तथा उन्होंने स्वतंत्र भारत के संविधान को लिखने में मदद की थी। उन्हें 14 भाषाओं का ज्ञान था। उन्होंने कुरान का मराठी भाषा में अनुवाद किया था। निर्मला देवी की माता वो प्रथम भारतीय महिला थीं, जिन्हें गणित में स्नातक की ऑनर्स उपाधि प्राप्त हुई थी।

निर्मला जी का बचपन उनके नागपुर के पैतृक निवास में बीता था। युवा होने पर निर्मला देवी अपने माता पिता के साथ गाँधीजी के आश्रम में रहने लगीं। गांधीजी ने निर्मला देवी के विवेक और पांडित्य को देखकर उन्हें निरंतर प्रोत्साहन दिया। अपने माता पिता के समान निर्मला देवी ने भी स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया और 1942 में गांधीजी के असहयोग आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी के कारण निर्मला देवी को भी अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ जेल जाना पड़ा।
मनुष्य की संपूर्ण नाड़ी तंत्र का ज्ञान
निर्मला देवी के अनुसार उन्हें जन्म से ही मनुष्य के सम्पूर्ण नाड़ी तंत्र का ज्ञान था। साथ ही वो इसके उर्जा केन्द्रों से भी परिचित थीं। परन्तु इस सम्पूर्ण ज्ञान को वैज्ञानिक आधार देने तथा वैज्ञानिक शब्दावली के अध्ययन हेतु उन्होंने क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, लुधियाना और बालकराम मेडिकल कॉलेज, लाहौर से आयुर्विज्ञान एवं मनोविज्ञान का अध्ययन किया था।
वैवाहिक और पारिवारिक जीवन
भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति से कुछ समय पहले 1947 में, निर्मला जी ने चंद्रिका प्रसाद श्रीवास्तव नामक एक उच्चपदासीन भारतीय प्रशासनिक अधिकारी से शादी कर ली। चंद्रिका प्रसाद श्रीवास्तव, ने बाद में लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान संयुक्त सचिव के रूप में कार्य किया। उन्हें इंग्लैंड की महारानी द्वारा मानद नाइटहुड भी प्रदान किया गया। निर्मला देवी की दो बेटियां, कल्पना श्रीवास्तव और साधना वर्मा हैं। 1961 में निर्मला जी ने “यूथ सोसायटी फॉर फिल्म्स” की शुरुआत युवाओं में राष्ट्रीय, सामाजिक और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए की थी। वह केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की सदस्य भी रहीं। 23 फरवरी 2011 में उन्होंने 87 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
क्या है सहजयोग
सहजयोग का हिंदी में अर्थ है कि सह =आपके साथ और ज =जन्मा हुआ योग। इससे तात्पर्य मिलन या जुड़ना है। अत: वह तरीका, जिससे मनुष्य का सम्बन्ध (योग) परमात्मा से हो सकता है सहजयोग कहलाता है। मानव शरीर में जन्म से ही एक शुक्ष्म तन्त्र अद्रश्य रूप में हमारे अन्दर होता है। इसे आध्यात्मिक भाषा में सात चक्र और इड़ा, पिंगला, शुशुम्ना नाड़ियों के नाम से जाना जाता है। इसके साथ परमात्मा कि एक शक्ति कुंडलिनी नाम से मानव शरीर में स्थित होती है। यह कुंडलिनी शक्ति बच्चा जब माँ के गर्भ में होता है और जब भ्रूण दो से ढाई महीने (60 से 75 दिन) का होता है, तब यह शिशु के तालू भाग (limbic area) में प्रवेश करती है और मश्तिष्क में अपने प्रभाव को सक्रिय करते हुए रीढ़ कि हड्डी में मेरुरज्जु में होकर नीचे उतरती है। इससे ह्रदय में धड़कन शुरू हो जाती है। इस तरह यह कार्य परमात्मा का एक जीवंत कार्य होता है। इसे डॉक्टर बच्चे में एनर्जी आना बोलते हैं। इसके बाद यह शक्ति रीढ़ कि हड्डी के अंतिम छोर तिकोनी हड्डी (sacrum bone) में जाकर साढ़े तीन कुंडल (लपेटे) में जाकर स्थित हो जाती है। इसीलिए इस शक्ति को कुंडलिनी बोलते हैं।

कुंडलिनी को जागृत करने की विधि है सहजयोग
कुंडलिनी के रूप में यह शक्ति प्रत्येक मानव में सुप्तावस्था में होती है। जो मनुष्य या अवतार इस शक्ति के जागरण का अधिकारी है वह यह कुण्डलिनी शक्ति जागृत करता है। इससे मानव को आत्मसाक्षात्कार मिलता है तब यह कुंडलिनी शक्ति जागृत हो जाती है और सातों चक्रों से गुजरती हुई सहस्त्रार चक्र पर पहुँचती है। तब मानव के सिर के तालू भाग में और हाथों कि हथेलियों में ठण्डी -ठण्डी हवा महसूस होती है। इसे हिन्दू धर्म में परम चैतन्य (Vibrations), इस्लाम में रूहानी, बाइबिल में कूल ब्रीज ऑफ़ द होलिघोस्ट कहा जाता है। इस तरह सभी धर्म ग्रंथो में वर्णित आत्मसाक्षात्कार को सहजयोग से प्राप्त किया जा सकता है
धरती पर आने वाले संत, गुरु, पीर, पैगंबर सभी थे जानकार
अब तक धरती पर जो भी सच्चे गुरु, सूफी, संत, पीर पैगम्बर और अवतार आए, वे सहजयोग से भलीभांति परिचित थे। वे सब परमात्मा से योग का एकमेव रास्ता सहजयोग दुनिया को बताना चाहते थेष परन्तु उस समय साधारण मानव समाज उन बातों को समझ नहीं पाया और उनके जाने के बाद अलग अलग धर्म सम्प्रदाय बनाकर मानव आपस में लड़ने लग गए। संत कबीर ने जीवन भर सहजयोग का ही वर्णन किया है, परन्तु वे किसी को आत्मसाक्षात्कार दे नहीं पाये।
माता निर्मला देवी ने किया सार्वजनिक
धरती पर मानव उत्क्रांति में समय समय पर किये गये परमात्मा के कार्य में अनेक गुरु, सूफी, संत, पीर पैगम्बर और अवतारों ने धरती पर जन्म लिया और मानव जाति को सहजयोग का ज्ञान दिया। अब तक इनके किये गये अधूरे आध्यात्मिक कार्यो को आगे बढ़ाते हुए इसको सार्वजनिक करने के लिए साक्षात् आदिशक्ति का अवतरण निर्मला श्रीवास्तव (माताजी निर्मला देवी) रूप में हुआ। जो आधुनिक युग में सहजयोग संस्थापिका रहीं। उन्होंने दुर्लभ आत्मसाक्षात्कार को सार्वजनिक और आसान बनाकर संसार में प्रदान किया। इसका आज विश्व के 170 देशों के सभी धर्मों के लोग लाभ ले रहे हैं।
उत्तराखंड में भी है सहयोग का केंद्र
उत्तराखंड के देहरादून में सहयोग का केंद्र है। यहां इसे बढ़ावा देने के लिए राज्य समन्वयक सतीश सिंघल और डॉक्टर रोमिल भटकोटी को युवा शक्ति उत्तराखंड का राज्य समन्वयक नियुक्त किया गया है। केंद्र के ट्रस्टी जगपाल सिंह और केंद्र समन्वयक मंगल तोमर देहरादून सहजयोग ध्यान केंद्र को संचालित कर रहे हैं। मालसी देहरादून में इसका केंद्र है। हर रविवार को आनलाइन भी सहयोग से लोग जुड़ते हैं।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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