अपने कदमों की तरफ झाँक लेना जरा सा, कांटों के सफर को खुद ही बयाँ कर देंगे अफसाने
जमाना उधार है इंसान
मत पूछ मेरी हैसियत क्या है,
मेरी आरामगाह मेरे आराम के
माकूल है ज़माने…..
सच ही तो है जब पूरी दुनिया में आपके साथ कोई नहीं खड़ा था तब भी आप जिंदा थे, अपने अस्तित्व को लेकर अडिग थे, उत्साही थे, जब आपके साथ चार लोग हमसफर बने तब भी आप उत्साही रहे। मंजिल को पाने की चाह मन में लिए सफर पर बढ़ते रहे और जब आज आपके साथ जमाना भर है। संगी साथी हैं, विरोधी भी हैं, मंजिल करीब सी भी लग रही है, कहीं पर झटके भी हैं। तब भी आप ही खड़े हैं अपने वजूद को लेकर। जब शुरू से लेकर आज तक अनेकों साथी आये और गए, कई तूफानों से सामना हुआ, कई घात लगाकर बैठे रिपुओं का भी आपने सीना तान सामना किया।
हर वार को डटकर सहा, पर्वत सी ऊँची कठिनाइयों में भी आपका विश्वास नहीं डिगा, आप बस बढ़ते गए तो फिर अचानक जमाने की सुन, जमाने के तानों से क्या घबराना। विचलित होना इंसान की फितरत में है, लेकिन उस विचलन को स्थाई ना रखकर बस प्रगतिरत रहना ही पुरुषार्थ का प्रतीक है। जिस जमाने ने हमेशा परिवर्तनीय व्यवहार रखा, जब फुटपाथ था जिंदगी में बिछौना तब लात मारकर निकला था, जब कदम डगमगा गए तो लाठी छीनने की कोशिश की। फिर जब तेरी सपनों का महल बनाने की बारी आई तो उसी जमाने ने तुझे सलाम करना भी शुरू किया और फिर उसी जमाने की सोच तू आज अचानक घबरा रहा है, ये तो पौरुष नहीं हुआ यार।
चिन्दियों के भाव में तब बिक रही थी इज्जत,
तब दाम लगाने वाला कोई ओर नहीं, ये जमाना था,
थम रही थी साँसें और बिलबिला रहा था मदद को,
तब कब्र खोदने वाला ओर नहीं, ये जमाना था।
हाँ, तेरी महफूजियत की दुआ माँगने वाले भी मिले हैं ना बहुत, तो उनकी सुन ना। अपनी अक्ल के घोड़े दौड़ा यार। अपनी सोच को इतना तो विकसित कर कि सही और गलत का फर्क पहचान सके। जब इतना सब तू कर लेगा तो फिर तुझसे हैसियत नहीं पूछेगा जमाना। तब अपनी मर्जियों का मालिक तू खुद होगा। हमराह भी तेरी सोच से बनेंगे, हर राह भी तेरे कदमों से रून्धने को तैयार रहेगी। लेकिन तुझे पहले अपने वजूद को अखंड बनाने की जिद्द तो खुद ही करनी पड़ेगी ना।
कोई कहता है, तुम सुनते नहीं हो तो बोल दे हाँ नहीं सुनता, कोई कहता है, रुक जा, तो बोल दे नहीं रूकूँगा, कोई तुझे कुछ भी कहे तू बस लक्ष्य का साधक बन जा। बस शर्त ये है कि जो तू कर रहा है क्या वो सही है, किसी के लिए नुकसानदायक तो नहीं है, गलत तो नहीं है। अगर तुझमें वो सोच विकसित है जो सही गलत का वास्तविक विभेद समझ पा रही है, तो बढ़ता चल राही बस बढ़ता चल।
तेरी चारपाई, तेरी आरामगाह, तेरी छोटी सी झोंपड़ी भी फिर तुझे सपनों का महल लगेगा, क्योंकि अब तू जमाने की नहीं अपनी सुनने लग गया। तू जमाने की दौड़ में उन लोगों से तो आगे हो ही लिया जो विचलन का शिकार थे क्योंकि तू सही राह पकड़कर बढ़ता जा रहा है। जब दंभ आने लगे तो तुझे पीछे मुड़ने की जरूरत ही ना पड़ेगी, बस अपने कदमों की तरफ झाँक लेना जरा सा, जो काँटों भरी राह से गुजरने के अफसाने खुद ही बयाँ कर देंगे। जब भटकने लगे राह तो आड़ी-टेढ़ी पगडंडियों की शरण ले लेना, क्योंकि वही असली सीख दे पाएंगी तुझे। जब तेरा क्रोध तुझ पर हावी होने लगे तो अपने पर जुल्म ढाने वालों की सूरत याद कर लेना, क्योंकि तब तुझे असली क्रोध बहुत बुरा लगा था।
जब तू हारने लगे तो अपनी जिंदगी में आये पहले तूफॉं को याद कर लेना कि कैसे तू अडिग, अचल योद्धा बनकर पतवार चलाने लगा था। पर याद रखना ये जमाना तब भी तेरा पीछा नहीं छोड़ेगा, तुझे बहकाएगा, डराएगा, धमकाएगा, कभी भविष्य के नाम पर विचलित करेगा, तो कभी तेरा मजाक बनाएगा। कभी रुलाने की पुरजोर कोशिश करेगा तो कभी इतना हँसाएगा कि लोग तुझे पागल की श्रेणी का समझने लगे। मगर तुझे बस सम रहना है, प्रसन्न रहना है क्योंकि ईश्वर पौरुष का साथ देते हैं, समता का साथ देते हैं, और वही तो तुझे बनाये रखनी है। ज़माने को बस इतना जता दे कि मुझे आपकी नहीं, अपने आपको जगाने की आवश्यकता है।मे री हैसियत से आपको क्या फर्क पड़ेगा, मैं खुश हूँ अपने आप में, मेरी जमीं मेरे पास है, मेरा आसमां मेरे पास है।
मौलिक व स्वरचित
नेमीचंद मावरी “निमय”
बूंदी, राजस्थान
युवा कवि, लेखक व रसायनज्ञ हैं, जिन्होंने “काव्य के फूल-2013”, “अनुरागिनी-एक प्रेमकाव्य-2020” को लेखनबद्ध किया है। स्वप्नमंजरी- 2020 साझा काव्य संग्रह का कुशल संपादन भी किया है। लेखक ने बूंदी व जयपुर में रहकर निरंतर साहित्य में योगदान दिया है तथा पत्रिका स्तंभ, लेख, हाइकु, गजल, मुक्त छंद, छंद बद्ध, मुक्तक, शायर, उपन्यास व कहानी विधा में अपनी लेखनी का परिचय दिया है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।