कभी सोनिया के लिए पूर्व पीएम वाजपेयी से भिड़ गई थी ममता, अब कर दी कांग्रेस पर स्ट्राइक, मेघालय में दिया बड़ा झटका
कभी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बीच बहुत ही अच्छे रिश्ते रहे हैं। सोनिया गांधी के लिए पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी से भिड़ने वाली ममता अब कांग्रेस के प्रति आक्रमक रुख लिए नजर आ रही है।
राजीव गांधी से शुरू हुई कहानी
ममता बनर्जी और सोनिया गांधी के बीच मधुर रिश्ते की कहानी राजीव गांधी से शुरू होती है, जब उन्होंने ममता को यूथ कांग्रेस का महासचिव बनाया था। राजीव से नजदीकी की वजह से ममता सोनिया गांधी की भी करीबी हो गई थीं। दोनों के बीच एक भावुक रिश्ता रहा है। 1999 में जब वो एनडीए में शामिल होकर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में बतौर मंत्री शपथ लेने पहुंची थीं, तब राष्ट्रपति भवन में दोनों नेता गले मिलते देखी गई थीं। तब ममता को बधाई देते हुए सोनिया गांधी ने पूछा था कि कांग्रेस में कब लौटोगी? उस वक्त सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष बन चुकी थीं।
सोनिया के लिए भिड़ गई पीएम से
उसी साल जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने कांग्रेस प्रमुख को राजनीतिक रूप से दबाने की कोशिश की और संवैधानिक पदों खासकर प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति पद पर विदेशी मूल के लोगों को पहुंचने से रोकने के लिए संसद में बिल लाने की कोशिश की। उसी सरकार में रेल मंत्री और गठबंधन सहयोगी तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने सरकारी मुहिम को झटका दे दिया था। ममता ने तब साफ तौर पर कहा था कि सोनिया गांधी को अलग-थलग करने के प्रयास सत्तारूढ़ गठबंधन पर भारी पड़ सकते हैं।
पूरी तरह निभाया साथ
यही नहीं, ममता ने तब सोनिया गांधी का साथ पूरी तरह निभाया। 1999 के चुनावों में बीजेपी ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था। इसलिए सरकार बनने पर उस पर एक तरह का नैतिक दबाव था कि इस बारे में संसद से कानून पारित कराया जाय। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी इस मामले में बीजेपी पर दबाव बना रहा था। इन सबके बीच तब के कानून मंत्री राम जेठमलानी और सूचना एवं प्रसारण मंत्री अरुण जेटली को इस विवादित बिल का ड्राफ्ट तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी।
तब इन नेताओं ने कहा था कि बिल ड्राफ्ट करने में थोड़ा वक्त लग सकता है। बिल की तैयारियों के बीच ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से संसद भवन में ही मुलाकात की और उनसे अपना विरोध दर्ज कराया। ममता ने दो टूक शब्दों में कहा कि सरकार विदेशी मूल के भारतीयों (जैसे गांधी) को राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री जैसे शीर्ष पदों के लिए चुनाव लड़ने से रोकने के लिए कोई भी कानून लाने से पहले नफा-नुकसान का आंकलन कर लें। इस पर पीएम वाजपेयी ने तब सोच-विचार करने का आश्वासन दिया था। इसके बाद कांग्रेस के कई सांसदों ने इस प्रस्तावित बिल का विरोध किया था। तृणमूल कांग्रेस के भी सांसदों ने बिल का विरोध करना शुरू कर दिया था।
अब कर दी सियासी स्ट्राइक
कहते हैं कि राजनीति और जंग में सब कुछ जायज है। ममता बनर्जी ने भी ऐसा ही किया। अब उन्हें क्षेत्रीय राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय राजनीति में पकड़ मजबूत बनानी है। पश्चिम बंगाल में बीजेपी के हौसले पस्त करने के बाद उन्होंने अब दूसरे राज्यों में भी कदम बढ़ाने शुरू कर दिए। इसी कड़ी में मेघालय के पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा राज्य के 17 कांग्रेस विधायकों में से 12 के साथ टीएमसी में शामिल हो गए हैं। सूत्रों ने बताया कि इस संबंध में विधायक पहले ही विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिख चुके हैं। कांग्रेस नेताओं के इस दल बदल के बाद तृणमूल कांग्रेस राज्य में प्रमुख विपक्षी दल बन गई है।
पिछले कुछ महीनों से राज्य में तृणमूल कांग्रेस विस्तार की राह पर चल रही है। मेघालय में टीएमसी के विस्तार में कांग्रेस नेताओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया है। पार्टी इन राज्यों में अगले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर त्रिपुरा और गोवा में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही है। कल मंगलवार को ममता बनर्जी की पार्टी ने तीन प्रमुख अधिग्रहण किए, जिससे टीएमसी कम से कम दो राज्यों हरियाणा और पंजाब में अपने पैर जमाने में सफल हुई है।
पूर्व भारतीय क्रिकेटर और कांग्रेस नेता कीर्ति आजाद, जनता दल (यूनाइटेड) के पूर्व राज्यसभा सांसद पवन वर्मा और हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर मंगलवार को तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस की पृष्ठभूमि वाले कई अन्य नेता पिछले कुछ महीनों में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए हैं। इनमें सुष्मिता देव, लुईजिन्हो फालेरियो और अभिजीत मुखर्जी प्रमुख हैं।
चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर कर रहे मदद
बंगाल के बाहर टीएमसी के पैर पसारने में चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ममता बनर्जी की पूरी मदद कर रहे है। प्रशांत किशोर कई बार राहुल गांधी और कांग्रेस की आलोचना भी कर चुके हैं और कह चुके हैं कि इस स्थिति में पार्टी नरेंद्र मोदी से टक्कर नहीं ले सकती। वहीं उनको इस बात का विश्वास हो चला है कि बंगाल की सीएम ममता बनर्जी पीएम मोदी के खिलाफ के बड़ा चेहरा साबित हो सकती हैं।
त्रिपुरा में भी विस्तार की कवायद
उधर टीएमसी त्रिपुरा और गोवा में भी विस्तार करने में लगी हुई है। इन दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार है। गोवा में तो पूर्व मुख्यमंत्री फलेरियो भी टीएमसी का दामन थाम चुके हैं। हाल ही में राहुल गांधी के बेहद करीब रहे कीर्ति आजाद और अशोक तंवर भी टीएमसी में शामिल हो गए।
भाजपा को हराने में करेंगी अखिलेश की मदद
उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव के बारे में पूछे जाने पर ममता कह चुकी हैं कि उनकी पार्टी अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी की मदद करने को तैयार है। उन्होंने कहा, ”यदि तृणमूल कांग्रेस उत्तर प्रदेश में भाजपा को पराजित करने में मदद कर सकती है तो हम जाएंगे। यदि अखिलेश यादव हमारी मदद चाहते हैं तो हम मदद करेंगे। उन्होंने कहा कि वह वाराणसी भी जाएंगी क्योंकि ”कमलापति त्रिपाठी का परिवार अब हमारे साथ है”। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी के परिवार के राजेशपति और ललितेशपति त्रिपाठी अक्टूबर में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।