शिक्षक एवं कवि कालिका प्रसाद सेमवाल की कविता-बालिकाये सरल हृदय की होती है
बालिकाये सरल हृदय की होती है
बालिका सरस्वती की वाणी होती है,
बालिका ही दुर्गा कल्याणी होती है।
बालिका को जब मिला अवसर,
बालिका ने बन कर दिखाया अफसर।
बालिका ने आन्तरिक में चली गई है,
बालिका ने सागर की गहराई नाप दी।
बालिका रामायण गीता होती है,
बालिका कहानी और कविता होती है।
बालिका का कोई धमका नहीं सकता,
बालिका को कोई डरा नहीं सकता।
बालिका गंगा यमुना जैसी होती है,
बालिका स्नेह की मूरत होती है।
बालिका ने अपनी ताकत पहचान ली,
बालिका ने भ्रान्तियों को मिटा दिया है।
बालिका की किलकारी मिश्री होती है,
बालिका ठुमक-ठुमक कर चलती है।
बालिका हिमालय सी धवल होती है,
बालिका सरोबर सी शांत होती है।
बालिका फूलों की खूशबू सी होती है।
बालिका मखमली बुग्याल होती है।
बालिका घर में खुशियां लाती है,
बालिका घर के कार्यो में हाथ बटाती है।
बालिका सरल हृदय की होती है,
बालिका बाबुल की परी होती है।
बालिका भोर की गुनगुनी धूप होती है,
बालिका दो घरों की लाज होती है।
बालिका फूल सी कोमल होती है,
बालिका सरल हृदय वाली होती है।
कवि का परिचय
नाम-कालिका प्रसाद सेमवाल
अवकाश प्राप्त प्रवक्ता, जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान रतूड़ा।
निवास- मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।