शिक्षिका हेमलता बहुगुणा की कविता-कवि सम्मलेन
कवि सम्मलेन
एक दिन मैं बैंठी बैठी क कवि
सम्मेलन का बारा म सोचण लग्यूं
मैं कबि कवि सम्मेलन म जौंलू
मन मैं सोचण त्यूं लग्यू ।
सोचदा सोचदा जरा मन भरमाई
आगाडी बढणो कू थोड़ा मौका आई
मन की बात मन ही थयौं बोलणु पर
अगाणी बढ़णु कू कोई सास नी आई।
भाई बन्धु तैं आवाज लगाई
अरे भाई जरा यम त आवा
मैं तैं अगाडी बढ़णु कू साहस त द्यावा
थोडा जोश मैं तै दिखावा।
पर कैन खुटी पिछाणी खिंची दिनी
घम्म गिरीयो मैं मेरू दांत टूटी गिनी
ई बात ही मेरु मन रूठी गिनी
दिल मेरू तब पट्ट टूटी गिनी ।
घर जाणु कू अब मन नी करी
फिर भी घर तैं मैं दौड़ी दौड़ी आई
घर द्वू चारून सहानुभूति दिखाई
कख थी जाणु अर क्या करी आई।
त्वैन अपणी मुखणी ख्वैयाली
अपणा अगाणी का दांत के त्वैड्याली
चला तेरा नया दांत लगौंला
तेरी मुखडी तै फिर संजौला।
हैंका दिन भी कवि सम्मेलन आई
वैम मेरूनौं सबसी अगाड़ी आई
डरीक घबरैक कविता पडैली
अगाड़ी सबियू म मैं ही ऐगी।
कैका डरायन डर्यू नी चैदू
सब समय सबकू एक जनू नी रदूं
ईंश्वर कू ध्यान म म काम करदी रावा
सफल काम आसूं ह्वै जादूं।
कवयित्री का परिचय
नाम-हेमलता बहुगुणा
पूर्व प्रधानाध्यापिका राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय सुरसिहधार टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।