शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता- तलाश
तलाश
मैं न जाने क्यों खुशी की,
तलाश में यूं ही भटकता रहा।
कभी वो न मिली मुझे
मैं उसकी खोज में चलता रहा।।
उससे मिलना जरूरी तो था,
पर उसको तो हमसे।
कोसो दूर जो जाना था,
हम बेवजह खाश मान बैठे उसे,
फिर भी तलाश में यूं ही,
न जानें क्यो मैं भटकता रहा।।
सोचता था छोटी सी जिंदगी है,
इसे यूं ही हंसकर गुजार लूं।
खुशी के चक्कर में जिंदगी गुज़र गई,
और मैं राहों में उसे तलाशता रहा।
कहां कहां नहीं ढूंढा मैंने उसे,
कभी मयखाने कभी शराबखाने में।
कभी भीड़ में तो कभी झूटे प्यार में,
पर वो तो दूर से देखती रही मुझे।
पर मैं फिर भी उसे तलाशता रहा।
पर मैं भी कितना पागल था,
जो उसे कई जगह तलाशता रहा।
खुशी तो मेरे अपनों के संग थी,
पर मैं उसे बाहर तलाशता रहा।
तलाशता रहा, तलाशता रहा।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।