शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता- मैं सड़क हूं

मैं सड़क हूं
मैं सड़क हूं,कई बार बनती,
कई बार टूटती।
मैंने तुम्हें अपनों से जोड़ा,
लेकिन क्यों लोगों ने,
मुझे बेवजह तोड़ा।।
कभी वर्षा ने, तो कभी बाढ़ ने।
कभी नदियों,तो कभी नालो ने।
कभी टेलीफोन वालों ने,
तो कभी केबिल बिछाने वालो ने।
कभी जल संस्थान वालों ने,
तो कभी ठेकेदारों ने।
फिर भी मै सहती गई,
पर खुश हू, मैंने शहर से गांव को जोड़ा।।
पर क्यों? सोचा कभी,
क्यों बनती, क्यों टूटती मैं।
दुखी हूं, परेशान हूं,
फिर भी मै रौंदी जाती।
कभी मोटर कारो से,
तो कभी ट्रकों से।
कभी जेसीबी वालों से,
तो कभी मोटर गाड़ियों से।
पर, उफ्फ तक नहीं करती मैं?
खुश हूं, मैंने तुम्हें गांव तक तो जोड़ा ।।
मैं सड़क हूं,
लेकिन क्यों लोगों ने,
मुझे वेवजह तोड़ा।
एक बार जरूर सोचना मन से,
मैंने तुम्हे गांव से तो जोड़ा।।
करती मैं सभी से हृदय से बिनती,
स्वार्थ के लिए मत तोड़ो मुझे।
राहें आसान करी हैं मैंने तुम्हारी,
इसीलिए तो शहरों से गांव को जोड़ा।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर रचना????