Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

March 12, 2025

पढ़िए साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-हिकमत

पढ़िए साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-हिकमत।

हिकमत

जंजोऴौ बात न कैर, योत रात- दिन रैंदा छन.
फिरोड़ा- फिरोड़ लगीं रैंद, इना दिन चैंदा छन..

जतगा छीं रोग-सोग, सब मनख्यूं कु बड़्यां छन.
कना – कना असाध रोग भि, मनखि सैंदा छन..

हिकमत से जौन कर काम-काज, घड़ि बे घड़ि.
वी मनखि त दुन्यम रैकि, अगनै कु बढ़ेंदा छन..

भोग- भाग सब छिं, समझांणा – बुथ्यांणा बत्ता
ऐक्सिडेंटल भि त, बेमौत ज्यू-ज्यान गवेंदा छन..

धरण चैंद-ज्यूम धीरज, दगड़म राखा हिकमत.
उनबि टूंणा-टुटका छल-छपट, अज्यूं छल्ये़दा छन..

इक्कीस्वीं सदि आई, चै बाइस्वीं अज्यूं आली.
नैं- नैं बिचारौं लोग, दुन्यम सदनि दिखेंदा छन..

‘दीन’ ! घैर-भैर- बढणूं बैर, चल़ड़ी रैंद सिकासैर.
दिल-दिमागा कमजोर मनखि, सदनि नपेंदा छन..

कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।

Website |  + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

1 thought on “पढ़िए साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-हिकमत

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page