तपोवन की व्यथा पर शिक्षिका सरोज डिमरी की कविता के माध्यम से संदेश

तपोवन की व्यथा
जिन बर्फ की चोटियों का दीदार करने,
सैलानी आते थे यहाँ सैर करने।
डर रहे हैं काँप रहे हैं नाम लेकर भी वहाँ,
यात्री बर्फबारी का आनन्द ले झूमते थे वहाँ।।
सभी गर्म लिवास ओढ़े खुश होकर घूमते,
वही बर्फ तबाही बन ले चला जीवन छीन के।
तपोवन तप का उपवन समाधि स्थल बन गया,
ना करो अति कभी भी ये संदेश दे गया।।
यह जो चारों ओर आवरण भयावह बन गया,
मौत का रूप ले आमरण स्थल बन गया।
सोचा न था हिम खण्ड भी काल बन कर आयेगा,
सैलानी दीदार करते वही तबाही कर जायेगा।।
दिन जुड़ा था मुण्डन का तो शादी का किसी का,
जन्म पत्री से मुहूर्त निकाला था जश्न का।
मगर किसको पता था सब यहीं समा जायेगा,
रात-दिन और सुख-दुख सब यहीं समा जायेगा।।
ये धरती कब तक दुख दर्द सहती रहती है,
भला खामोशी की सीमा से उकता जाती है।
यूँ दिया अंजाम असमय हो गये काल कलवित,
जागो धरा रही पुकार प्रकृति से न करो छेड़-छाड़।।
कवयित्री का परिचय
नाम-सरोज डिमरी
सहायक अध्यापक
राजकीय आदर्श उच्च प्राथमिक विद्यालय गौचर
ब्लॉक कर्णप्रयाग, चमोली गढ़वाल, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।