युवा कवि कल्पित पांड्या की कविता-फकीर हूँ पर लकीर का नही
फकीर हूँ पर लकीर का नही
शमशीर हूँ खंजर नही
जानता हूँ ज़माने का अंदाज़ा रखना
पहचानता हूँ गैरज़रूरी अपनापन का दिखावा
अगर हूँ कशमकश में तो अपनो को भी जाना
क्या हुआ अगर कुछ फरेब ओढ़े बैठे है
कुछ मेरे अपने भी हैं जो मेरे नखरे झेलते है
कहते हैं दुनिया ज़ालिम है
पर मुझे नही लगता
दुनिया असल मे अनजान है
खुद की योग्यता से
तभी वो खुद पर काम न कर के
औरो का काम तमाम करने में व्यस्त हैं
कवि का परिचय
कल्पित पंड्या
शिक्षा-एमएससी, पीएएमसीसी।
निवास-सागवाड़ा, डूंगरपुर राजस्थान।
वर्तमान में कल्पित बजाज फाइनेंस में जॉब कर रहे हैं। साथ ही वह सरकारी जॉब्स की तैयारी कर रहे हैं।
मो–9660960260
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।