युवा कवयित्री प्रीति चौहान की कविता-जरूरी है क्या?
जरूरी है क्या?
हर लड़का फिल्मों में दिखाए गए
अमीर बाप की बिगड़ी औलाद नही होता।
कुछ लड़के घर की जिम्दारियों के बोझ तले भी जीते है
उनके कंधो पर है एक ज़िमेदारी…
सड़क पर चलने वाला हर लड़का गुन्हागार नही होता…
उन्हें हर बार देखा जाए गुन्हागार नज़रो से जरूरी है क्या?
समझा जाए हर बार यही कि रिश्तों की कद्र नही इन्हें।
इन पर इतनी बड़ी तोमत लगाना जरूरी है क्या?
कुछ लड़के होते है जिन्हें फिक्र है हर रिश्ते की…
कुछ लड़के होते हैं जो करते है हिफाजत हर एक अपने की…
उनका इश्क़ ही झूठा होगा।
मोहब्बत के नाम पर फरेब रहा होगा।
दगा इन्ही ने किया होगा।
बिन हकीकत जाने ये सब कह जाना जरूरी है क्या ?
हर बार गलत एक लड़का ही हो जरूरी है क्या?
लड़को को खुलके रोने की इजाज़त न दी जाए
वो रो ले … कह दे दर्द अपना तो उन्हें कमजोर समझा जाए…
जरूरी है क्या?
हर लड़का गलत नही हो सकता।
लड़का हुआ तो क्या हुआ वो भी उदास होने पर जी भर रो सकता।
उसकी मोहब्बत भी सच्ची हो सकती है…
उसकी बहुत सारी बातें भी अच्छी हो सकती है …
हर बात पर शक नही कुछ पर विश्वास किया जा सकता है।
हाँ ये जरूरी है….
जरूरी है..…………
कवयित्री का परिचय
नाम-प्रीति चौहान
निवास-जाखन कैनाल रोड देहरादून, उत्तराखंड
छात्रा- बीए (तृतीय वर्ष) एमकेपी पीजी कॉलेज देहरादून उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।