विश्वविद्यालयों एवं शासन के अधिकारियों को छात्र हितों के प्रति यूजीसी की तरह रखना चाहिए सकारात्मक रवैया: डॉ. सुनील अग्रवाल
एसोसिएशन ऑफ सेल्फ फाइनेंसड इंस्टीट्यूटस उत्तराखंड के अध्यक्ष डॉ. सुनील अग्रवाल ने यूजीसी के अध्यक्ष द्वारा कॉलेजों में कोई सीट खाली न रखने के आदेश की सराहना की। उन्होंने कहा कि प्रदेश के विश्वविद्यालयों एवं शासन के अधिकारियों का छात्रों के प्रति सकारात्मक रवैया नहीं रहता है। उन्हें भी यूजीसी की तरह छात्र हितों के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि पिछले वर्ष गढ़वाल विश्वविद्यालय में यूजीसी की एसओपी के बावजूद बीएड कोर्स में सीटे खाली रहीं। विश्वविद्यालय ने खाली सीटों को भरने की अनुमति नहीं दी। इसके खिलाफ कॉलेजों को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी और अब वह रिक्त सीटें न्यायालय के आदेश से भरी जा रही हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसी प्रकार राज्य विश्वविद्यालयों के लिए समर्थ पोर्टल के माध्यम से रजिस्ट्रेशन 14 जुलाई तक हुए, जबकि कॉलेजों में सीटे खाली हैं। जो छात्र अन्य कोर्सों में प्रवेश के प्रयास के बाद ट्रेडिशनल कोर्स के लिए राज्य विश्वविद्यालय का रुख करते हैं, उनके लिए समर्थ पोर्टल की तिथि नहीं बढ़ाई गई। जो की यूजीसी कि इस भावना के कॉलेज में सीटे खाली नहीं रहनी चाहिए के विपरीत है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों के अधिकारी छात्र समस्याओं के प्रति संवेदनशील नहीं रहते। इसी कारण पिछले दिनों गढ़वाल विश्वविद्यालय में छात्रों का आंदोलन देखने को मिला छात्रों के रिजल्ट से संबंधित समस्याएं कई कई साल तक पेंडिंग रहती हैं, लेकिन अधिकारी उनको सुलझाने का प्रयास ही नहीं करते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि जब अपनी छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान छात्र विश्वविद्यालय के अधिकारियों से नहीं पाते हैं, तो उनमें निराशा होना स्वाभाविक है। परीक्षाएं देने के बाद रिजल्ट समय से प्राप्त करना छात्रों का अधिकार है। ऐसे कई प्रकरण हैं, जिसमें विश्वविद्यालय को छात्रों द्वारा समस्त प्रमाण प्रस्तुत करने के बावजूद अधिकारियों की लापरवाही के कारण रिजल्ट घोषित नहीं किए गए हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसी तरह से श्री देव सुमन विश्वविद्यालय से संबंधित कॉलेजों को विश्वविद्यालय के निरीक्षण के उपरांत भी कई-कई वर्ष तक संबद्धता प्रमाण नहीं मिलते हैं। इससे उन कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों को छात्रवृत्ति भी नहीं मिल पाती है। इस संबंध में भी संबंधित अधिकारी संबद्धता की फाइलों को समय से निस्तारण करने में रुचि नहीं रखते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि यूजीसी द्वारा पूर्व में भी यह कहा गया की सीट खाली नहीं रहनी चाहिए। अदालतों के आदेश भी यही भावना रखते हैं की कॉलेजों में सीट खाली नहीं रखनी चाहिए। वहीं, विश्वविद्यालयों के अधिकारी अपनी ओर से इस संबंध में कोई प्रयास नहीं करते हैंस संबंधित अधिकारियों के रवैये के कारण छात्र और कॉलेज संचालक शोषण का शिकार होते हैं। इसके कारण छात्रों का रुख निजी विश्वविद्यालयों की तरफ अधिक हो चुका है। इससे राज्य विश्वविद्यालयों से संबद्ध कॉलेजों में सीटे खाली रहती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि अब विश्वविद्यालयों एवं शासन को गंभीरता से छात्रों के हित के प्रति विचार करते हुए निर्णय करने चाहिए। क्योंकि क्या वह विश्वविद्यालय का अधिकारी हो, चाहे शासन के अधिकारी हों। सभी को पद और उस पद के लिए वेतनमान जनता के हितों के लिए काम करने के लिए दिया जाता है। विश्वविद्यालयों में अधिकारियों की प्रवृत्ति काम को रोकने पर ज्यादा रहती है, जो प्रदेश की शिक्षा के हित में नहीं है।
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Bhanu Prakash
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।