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November 16, 2024

कवि सोमवारी लाल सकलानी की दो कविताएं-कानून हमें आरक्षण दे दो, किया प्रयास कुछ तुमने

कानून हमें आरक्षण दे दो।

मेरा प्यारा हिन्दुस्तान,
जहां आरक्षण सदाबहार।
आजादी के वर्ष बहत्तर,
आरक्षण ही खेवनहार।
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान।

आठ लाख का निर्धन गरीब
पांच एकड़ है मात्र जमीन।
सवर्ण समाज क़े यह हालात
आरक्षण पाये अब यह जमात।
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान।

बेचारी माया अभी गरीब
लाल मुलायम आरक्षण वीर।
कैसे सुधरेगी यह तकदीर
आजाद मुल्क की यह तस्बीर।
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान।

ढाई लाख का आयकर दाता
केवल गरीब का वोट है भाता।
झुग्गी वाला रास न आये
सबको आरक्षण ही भाये।
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान।

भाई अब सबको आरक्षण दे दो।
कर्ज सब का माफ भी कर लो।
आजाद मुल्क है कुछ भी कर लो
पर कानून हमें आरक्षण दे दो।
मेरा प्यारा हिन्दुस्तान।

किया प्रयास कुछ तुमने

किया प्रयास कुछ तुमने, किया प्रयास कुछ हमने।
दिया है साथ बच्चों ने, किया प्रयास सबने मिल के।
बना मकान अब घर यह, सुसज्जित लग रहा है सब।
लगे हैं लोग आने अब , गांव गुठयार जग गए हैं तब।
किया प्रयास कुछ तुमने
हंसी पठाल जब छत पर, आ गए महादेव भी घर पर।
भर गया आंगन बच्चों से, उतर आए देव भी दर पर।
बना मकान जन्नत यह, आ गए मिलने को हम भी तब।
महक पक्वान रसोई में, खुशबू फूलों की महकी सब।
किया प प्रयास कुछ तुमने
सफाई हो गई घर की, पुताई हो गई घर दीवारों की।
दिंडयाला भी तब दमका, जब मेहमान आए घर पर।
बजा रेडियो जब छज्जे पर, सुनी धुन तब खगमृग सब।
हुआ हर्षित निशांत का मन , स्वच्छ सुन्दर बना जब घर।
किया प्रयास कुछ तुमने

कवि का परिचय
सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।
सुमन कॉलोनी, चंबा, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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