जनकवि डॉ. अतुल शर्मा की दो कविता-यह साल जा रहा है, जमे रहते हैं बर्फ के पहाड़
यह साल जा रहा है
आने वालों के लिए
जगह छोड़ता हुआ
वह है ही
हजारो साल जैसा
वक्त की बर्फ पिघल रही है
जमीन की प्यास बुझाते हुए
मै समय के साथ हूं
समय को मोड़ता हुआ
मै प्रवाह से करता हूं प्रेम
प्रवाह के विरुद्ध चलता हुआ
न ई फसल और यह न ई जमीन
आने वाले समय को
सौपता हुआ
और लहराता हुआ
जीत का रुमाल ।
कविता-दो
जमे रहते हैं बर्फ के पहाड़
जमी रहती हैं ऊंचाई पर
नदियां
जलते रहते हैं आग उगलते चूल्हे
उगते रहते हैं खुशी या उदासी भरे गीत
याद आते हैं छोये
समय के साथ जगह बदलते हुए
समय के जंगल मे
जो पगडंडी है एक
वही ले जा रही है समय के पार
हम तुम
पास पास हों न हों
साथ साथ रहेगी
हर साल ।
कवि का परिचय
डॉ. अतुल शर्मा (जनकवि)
बंजारावाला देहरादून, उत्तराखंड
डॉ. अतुल शर्मा उत्तराखंड के जाने माने जनकवि एवं लेखक हैं। उनकी कई कविता संग्रह, उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। उनके जनगीत उत्तराखंड आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों की जुबां पर रहते थे।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।