ललित मोहन गहतोड़ी की दो कविताएं – पव्वा पत्रकार और आदमी “हीरा” है…
पव्वा पत्रकार!
हां है वह!
पव्वा पत्रकार है वह!
चाटुकारों का सरदार है वह!
जन सरोकारिता का सवाल नहीं!
खैराती कुर्सी का उसे लिहाज नहीं!
फटे टाट सा बिखरा जार जार है वह!
पव्वा पत्रकार है वह!
लड़ता नहीं वह बे मतलब!
दिखता नहीं कभी बे फुर्सत!
कुछ छोटी कुछ बड़ी चढ़ी!
बीती बातों का गुनाहगार है वह!
पव्वा पत्रकार है वह!
मतलब नहीं उसे कोई मरे!
कोई बचे और कोई फंसे!
आदत से लाचार ढीढ़!
खाने खराब है वह!
पव्वा पत्रकार है वह!
सांप से भी है जहरीला!
जींस पहनता है कुछ ढीला!
सफेद लाल काला नहीं नीला!
मीडिया में द लाल है वह!
पव्वा पत्रकार है वह!
उसे चाहिए पव्वा हर शाम!
नहीं तो समझो नींद हराम!
तब तक नहीं करता आराम!
बात सुनो मजबूर लाचार है वह!
पव्वा पत्रकार है वह!
आदमी “हीरा” है…
मत समझो जीरा है
ना हीं जलजीरा है
थौड़ा सा पागल है
थौड़ा सरफिरा है
खाता कुछ और
बताता तो खीरा है
आदमी “हीरा” है…
जगता है दिन चढ़े
सोता अंधेरा है
बातों में देखो
उसके बड़ा फेरा है
खाता कुछ और
बताता तो खीरा है
आदमी “हीरा” है…
बुद्धि का मोटा
कद-काठी टोटा है
अपना यह सिक्का तो
बेहद ही खोटा है
खाता कुछ और
बताता तो खीरा है
आदमी “हीरा” है…
मन में राम जपता
बगल छुरी रखता है
इसकी टोपी उसके
सिर करता रहता है
खाता कुछ और
बताता तो खीरा है
आदमी “हीरा” है…
लेखक का परिचय
ललित मोहन गहतोड़ी
शिक्षा :
हाईस्कूल, 1993
इंटरमीडिएट, 1996
स्नातक, 1999
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी, 2000
निवासी-जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट
जिला चंपावत, उत्तराखंड।





