कवि ललित मोहन गहतोड़ी की कलम से दो कुमाऊंनी होली गीत
गं गं गणपति देवा….
जय गणपति महराज…
गं गं गणपति देवा।।टेक।।
सिद्ध करो महराज….
गं गं गणपति देवा।।टेक।।
राखिय सबकी लाज….
गं गं गणपति देवा।।टेक।।
पहलो सुमिरन नाम तुम्हारो ।।2।।
दूजा फिर सब काज…
गं गं गणपति देवा…
जय गणपति महराज….
गं गं गं गणनाथ दयानिधि ।।2।।
देवन के प्रिय देव…
गं गं गणपति देवा…
जय गणपति महराज….
महिमा तुमरि जग में न्यारी ।।2।।
लीला अपरमपार…
गं गं गणपति देवा…
जय गणपति महराज….
सब दुख भंजन गिरिजा नंदन ।।2।।
भक्तन राखियो लाज…
गं गं गणपति देवा….
जय गणपति महराज…
रिद्धि सिद्धि दोनों चंवर डुलावै।।2।।
मूषक वाहन साज…
गं गं गणपति देवा…
जय गणपति महराज…
मोदक तुमरे मन अति भावै।।2।।
भेंट करो स्वीकार…
गं गं गणपति देवा…
जय गणपति महराज..
बोलो गणपति बप्पा मोरिया
गीत-2
अचहारे…चेतुआ तेरो नानो पोतोआ लडझगड़ी
लडझगड़ी चितचोर रे चेतुआ….टेक
मुख गालन में दहिया बाड़ी।।2।।
खावै माखन चोर… रे चेतुआ तेरो…
ग्वालिन के संग धेनु चुंगावै।।2।।
संग में नाचै मोर… रे चेतुआ तेरो…
मटकी फोड़े दहिया खावै।।2।।
बाह कसै पुरजोर… रे चेतुआ तेरो…
उस चितचोर को ढूंढन लोगो।।2।।
मैं निकला पगडोर… रे चेतुआ तेरो…
कवि का परिचय
नाम-ललित मोहन गहतोड़ी
शिक्षा :
हाईस्कूल, 1993
इंटरमीडिएट, 1996
स्नातक, 1999
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी, 2000
निवासी-जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट
जिला चंपावत, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
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