झूठी खबरों का शिकार हो गया है सच, लोगों में सहनशीलता की कमीः सीजेआई चंद्रचूड़
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अमेरिकन बार एसोसिएशन इंडिया कॉन्फ्रेंस 2023 में कहा कि सोशल मीडिया के युग में सच झूठी खबरों का शिकार हो गया है। हम एक ऐसे युग में रहते हैं, जहां लोगों के पास धैर्य की कमी है। उनकी सहनशीलता कम हो गई है। सोशल मीडिया के जमाने में अगर उन्हें आपकी बात पसंद नहीं आती है तो वो आपको ट्रोल करना शुरू कर देते हैं।
सीजेआई (CJI) चंद्रचूड़ ने कहा कि संविधान वैश्विक प्रथाओं को आत्मसात करने वाला एक परिवर्तनकारी दस्तावेज था, लेकिन अब हमारी दिन-प्रतिदिन की जीवन शैली महासागरों में होने वाली घटनाओं से प्रभावित होती है। उन्होंने कहा कि कानून की वजह से ही आज लोगों में भरोसा है। एबीए को संबोधित करते हुए सीजेआई ने वैश्विक मुद्दों पर भी बात की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण ने अपने स्वयं के असंतोष का नेतृत्व किया है। दुनिया भर में मंदी के कई कारण अनुभव किए जा रहे हैं। वैश्वीकरण विरोधी भावना में वृद्धि हुई है। कहीं न कहीं, इसकी शुरुआत 2001 के आतंकवादी हमलों से हुई है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि COVID-19 अभी तक एक और वैश्विक मंदी थी, लेकिन यह अंधेरे में एक अवसर के रूप में उभरी। उन्होंने कहा कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से न्याय का विकेंद्रीकरण हुआ है और इसने न्याय तक लोगों की पहुंच को बढ़ाया है। सुप्रीम कोर्ट सिर्फ तिलक मार्ग का सुप्रीम कोर्ट नहीं है, बल्कि छोटे से छोटे गांव का सुप्रीम कोर्ट है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कोविड ने डिजिटल मार्केट प्लेस किया तैयार
CJI ने कहा कि कोविड ने एक डिजिटल मार्केट प्लेस तैयार किया है, जिसने भीतर काम करने का महत्व दिखाया है। कोविड ने हमें सिखाया कि हम एक-दूसरे से अलग-थलग रह सकते हैं लेकिन क्या यह एक स्थायी मॉडल है? सीजेआई ने कहा कि अमेरिका के हवाई और भारत के बीच विधि और न्याय के क्षेत्र मे नए पुल बनाना चाहते हैं। हमारा संविधान ग्लोबलाइजेशन से पहले ही ग्लोब्लाइजेशन (वैश्वीकरण) का आदर्श रहा है। उन्होंने कहा कि सात दशकों में बदलाव ये आया है कि खुलापन बढ़ा है सीमाएं खुली है। खुलेपन की हवा चली तो डेटा प्रोटेक्शन, कारोबारी मध्यस्थता, दिवालिया नियमों कानूनों को लेकर साझा कानूनों की जरूरत पड़ी। ये ग्लोबल करंसी ऑफ ट्रस्ट की तरह है। ये पूरी दुनिया के साझा इस्तेमाल की जरूरत है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हम अलग-अलग दृष्टिकोणों को स्वीकार करने को तैयार नहीं
CJI ने सोशल मीडिया पर कहा कि झूठी खबरों के दौर में सच ही शिकार हो गया है। आप जो कुछ भी करते हैं उसके लिए आपको किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा ट्रोल किए जाने का खतरा होता है जो आपसे सहमत नहीं है। लोगों में धैर्य और सहनशीलता की कमी हो रही है। हम अलग-अलग दृष्टिकोणों को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। सोशल मीडिया के प्रसार के साथ जो कहा गया है वो ऐसा बन जाता है जिसे वैज्ञानिक जांच से रोका नहीं जा सकता। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बदल रहा है न्याय देने का तरीका
उन्होंने कहा कि न्याय देने का तरीका बदल रहा है। अब का दौर आइडियाज के वैश्वीकरण का है। तकनीक हमारा जीवन बदल रही है। हम जजों का जीवन भी बदला है। कोविड के लॉक डाउन के शुरुआत में तब के चीफ जस्टिस ने हमसे पूछा था कि क्या हमें अपने दरवाजे भी बंद कर देने चाहिए। फिर हमने बात कर हर कोर्टरूम में डेस्कटॉप, लैपटॉप, इंटरनेट का इंतजाम कराकर जनता के लिए न्याय और उनकी आजादी सुरक्षित संरक्षित की। वीडीओ कॉन्फ्रेंस से सुनवाई का नया दौर शुरू हुआ। ब्रिटिश राज युग का आईपीसी और सीआरपीसी अद्भुत कानून है। हमने इतने दशकों में उसे अपने अनुभव, प्रयोगों और मेधा से और ज्यादा सशक्त और व्यवहारिक बनाया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट में महिला जजों की कम संख्या पर भी पक्ष रखा
CJI ने कहा कि हमारे यहां ये सवाल अकसर पूछा जाता है कि हमारे सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जितनी महिला जजों की संख्या होनी चाहिए, उतनी हैं नहीं। ये इस पर निर्भर करता है कि इस पेशे में कितनी महिलाएं आती हैं? बार में कितनी महिला वकील रजिस्ट्रेशन कराती हैं। लड़कियों की शिक्षा पर खासकर मध्य वर्ग परिवारों में इस पर ध्यान बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कई राज्यों में अब निचली जिला न्यायपालिका में 50-60 फीसद जज महिलाएं हैं। यह हम पर है कि हम उन लोगों के लिए सम्मान की स्थिति पैदा करें, जिन्हें हम पेशे में भर्ती करते हैं।
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भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।