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April 25, 2025

इस बार नवरात्र में बना ये योग, समस्त जीव पर पड़ेगा असर, जानिए शुभ मुहूर्त, ऐसे करें घट स्थापित और पूजाः आचार्य डॉ. संतोष खंडूड़ी

इस वर्ष शारदीय नवरात्रि आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा यानी सात अक्टूबर गुरुवार 20021 से 14 अक्टूबर 2021 गुरुवार के दिन तक आठ दिवसीय रहेंगी। इसमें चतुर्थी और पंचमी तिथि यानी 10 अक्टूबर को एक दिन ही एक दिन में ही मनाई जाएगी।

इस वर्ष शारदीय नवरात्रि आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा यानी सात अक्टूबर गुरुवार 20021 से 14 अक्टूबर 2021 गुरुवार के दिन तक आठ दिवसीय रहेंगी। इसमें चतुर्थी और पंचमी तिथि यानी 10 अक्टूबर को एक दिन ही एक दिन में ही मनाई जाएगी। इस बार नवरात्र में गुरु बृहस्पति भी अपनी चाल दिखाएंगे। इसका असर समस्त प्राणियों में पड़ेगा। यहां पूजन की विधि, शुभ मुहूर्त और घट स्थापना की विधि को विस्तार से बता रहे हैं आचार्य डॉ. संतोष खंडूड़ी।
शारदीय नवरात्र गुरु बृहस्पति से रहेंगे प्रभावित
इस वर्ष घटस्थापन व पूजा प्रारंभ का श्रेष्ठ अभिजीत मुहूर्त सात अक्टूबर की सुबह 11 बजकर 53 मिनट से 12 बजकर 39 मिनट तक घटस्थापन और पूजा प्रारंभ का श्रेष्ठ मुहूर्त है। इसी क्रम में लाभ और अमृत योग मुहूर्त 12 बजकर पांच मिनट से तीन बजकर एक मिनट तक रहेगा। पूजा प्रारंभ के सारे मुहूर्त धनु लग्न पर प्रारंभ हो रहे हैं। ज्योतिषीय मत के अनुसार धनु लग्न का स्वामी बृहस्पति है। अर्थात नवरात्रि प्रारंभ से समाप्ति तक मुहूर्त के प्रारंभ को लेकर यह संपूर्ण समय बृहस्पति से प्रभावित है।
आम जन को प्रभावित कर सकता है ये योग
वर्तमान में बृहस्पति मकर राशि पर शनि के साथ बकरी होकर बैठा है। बृहस्पति नीच राशि में शनि से प्रभावित है। ऐसी स्थिति में आम जनमानस में श्रेष्ठ, साधु संत, महापुरुष, देवालय और तीर्थाटन पूर्ण रूप से प्रभावित रहेंगे। जहां किसी भी प्रकार की घटना सुनने को मिलेगी। अर्थात धार्मिक कार्य पूर्णतया प्रभावित रहेंगे। पूजा से संबंधित वस्तुओं का व्यापार, स्वर्ण से संबंधित वस्तुओं से व्यापार में भी मंदी रहेगी। इसके कारण गुरु चांडाल परम सन्यास योग बन रहा है। यह योग कई लोगों की गृस्थियों को प्रभावित कर सकता है। साथ ही उनके अंदर परम वैराग्य की अवस्था बनती है। आम जन घर, परिवार, व्यापार, राजनीति और अपने पद प्रतिष्ठा से प्रभावित होंगे। इस काल में अत्यधिक गरमी होना, अनायास तूफान का आना, यातायात को प्रभावित करना दिखाई देगा।
नौ दिन होगी पूजा
प्रथम नवरात्र, सात अक्टूबर, मां शैलपुत्री की पूजा।
द्वितीय नवरात्र, आठ अक्टूबर-मां ब्रह्मचारिणी की पूजा।
तृतीय नवरात्र-नौ अक्टूबर-चंद्रघंटा मां की पूजा।
चतुर्थ नवरात्र, 10 अक्टूबर-कुसमांडा मां की पूजा।
पंचम नवरात्र, 10 अक्टूबर-स्कंदमाता की पूजा।
छठा नवरात्र, 11 अक्टूबर-मां कात्यायनी की पूजा।
सातवां नवरात्र-12 अक्टूबर-मां कालरात्रि की पूजा। 11 अक्टूबर की मध्यरात्रि 11 बजकर 51 मिनट से अगले दिन 12 अक्टूबर रात्रि नौ बजकर 47 मिनट तक रहेगी। इसमें मां महाकाली की पूजा अपने गण भैरव आदि के साथ मध्यरात्रि को की जाती है। जो कि 11 अक्टूबर की रात्रि से 12 अक्टूबर की सुबह तक संपन्न होगी।
आठवां नवरात्र-13 अक्टूबर-मां महागौरी की पूजा। प्राचीन समय में जिनके यहां बलि प्रथा थी, उनके यहां अष्टमी के दिन यज्ञ आदि कर नवरात्रि के दिन पूर्णाहुती हो जाती है।
नवमी-14 अक्टूबर-मां सिद्धीरात्रि की पूजा। अर्थात नव दिवसीय नवरात्रि। इसमें रात्रि को किया गया अनुष्ठान, ध्यान, जप, तप, पूजा और और आहार पर नियंत्रण, पूर्ण रूप से सफल सिद्ध होता है। नवरात्रि का मतलब रात्रि से है। इसमें जो भी व्यक्ति अपने को आहार पर नियंत्रण कर शुद्ध रहते हैं, उन्हें इन नौ दिवसों में निराहार रहने पर आयु, आरोग्य, धन, समृद्धि, मानसिक शांति, बौधिक शांति और संपूर्ण लाभ प्राप्त होता है।
दशमी-15 अक्टूबर-विजयदशमी अर्थात दशहरा। दशहरा का अभिप्राय अपनी पांच ज्ञानेंद्रियां और पांच कर्मेंद्रियों पर अंकुश लगाकर नियंत्रण कर देवी की आराधना करते हुए शक्ति अर्जित करना है। तभी हम अपने भीतर रावण जैसे अहंकार, पाप, कुरीति, कुनीति को समाप्त कर सकते हैं।
पूजा सामग्री
श्रीफल, नारियल, रोली, मोली, धूप, अगरबत्ती, दीपक, तेल, रुई, जौ, तिल, अक्षत, पंचमेवा, चुनरी, माता की मूर्ति, हनुमानजी की मूर्ति, भैरव जी की मूर्ति, गणेश जी की मूर्ति, चौकी, कलश, सिंदूर, कंगना, चूड़ी, दुर्गा शप्तति की किताब, श्रृंगार सामग्री, हल्दी, घी, चंदन, लौंग, जो बुआई का पात्र, शुद्ध स्थान की मिट्टी, पुष्प, प्रसाद आदि।
ऐसे करें घट स्थापन
-सबसे पहले गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। इसके बाद क्षौर कर्म (नाखून काटना, बाल काटना आदि)
-पूजा का स्थान शुद्ध करें। उत्तर पूर्व ईशान कोण पर पूजा का स्थान चयन करें।
-पूजा के स्थान पर चौकी रखें। इसमें मां दुर्गा की मूर्ति रखें।अन्य छोटी चोकियों में गणेशजी, भैरव, हनुमान जी की मूर्ति रखें।
-जौ के बड़े पात्र में मिट्टी भरें।
-इसके बाद क्लश में नौ स्रोतों का शुद्ध जल लाकर क्लश में भरें। क्लश में आम पीपल के पत्ते लगाकर, श्रीफल में चुनरी लपेटकर क्लश के ऊपरी भाग में रख दें। मौली और रौली से सजा दें। स्वास्तिक बनाकर।
-इसके उपरांत जौ के पात्र में कुछ जौ को डालकर उसके बीच में क्लश स्थापित कर दें। फिर पुनः इसके चारों ओर जौ बिखेर दें।
-उसी समय चौकी में अखंड जोत की स्थापना कर दें।
-साथ ही पूजा सामग्री सजाने के बाद गणेश जी की पूजा करें।
-इसी प्रकार माता का पाठ प्रारंभ करना शुरू कर दें। जिसे हर दिन सुबह करना होगा।

आचार्य का परिचय
आचार्य डॉ. संतोष खंडूड़ी
(धर्मज्ञ, ज्योतिष विभूषण, वास्तु, कथा प्रवक्ता)
चंद्रविहार कारगी चौक, देहरादून, उत्तराखंड।
फोन-9760690069
-9410743100

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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