विघ्नहर्ता के हैं ये दस दिन, जानिए गणेश जी के रहस्य को भगवान शिव ने क्यों छिपाया, गणेश उत्सव का संदेशः आचार्य डॉ. संतोष खंडूड़ी
दस दिन तक माता पार्वती ने की निरंतर पूजा
जब भगवान शंकर अपने पुत्र कार्तिकेय के साथ समस्त देवताओं के कल्याण का हित लेकर तारकासुर का वध करने के लिए चले गए थे, तब कैलाश का वातावरण पूरी तरह शांत हो गया था। इसमें महादेव अपने समस्त शिव गणों सहित उस तारकासुर के वध के लिए युद्ध में चले गए थे। यह सब देखकर माता पार्वती ने अपनी जया और विजया दोनों सखियों के साथ विचार कर अपनी चिंता जाहिर की। तारकासुर नाम का दैत्य मायावी है। उससे बचने के लिए हमें अपने ईष्ट की उपासना करनी चाहिए। उसी समय मां पार्वती ने अपने ईष्ट आदि देव को पुकारा। यही वो भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी का दिवस था। वह दस दिन तक निरंतर भगवान की पूजा करती रही।
इस तरह प्रकट हुए आदिदेव
इसी भक्ति भाव से आदिदेव प्रकट हो गए। आदिदेव परम ब्रह्म देवों के देव हैं। इनकी उपासना करने से देवता भी कष्टमुक्त हो जाते थे। माता पार्वती ने अपनी भक्ति से जब उनको प्रकट किया। तो कई लोग कहते हैं कि माता ने अपने शरीर पर लगे हुए उबटन से आदिदेव ब्रह्मा प्रकट हुए । इसके साथ साथ अनेक प्रकार की दंतकथाएं भी आती हैं। मूलतः इन दस दिवसों में माता पार्वती ने पांच ज्ञानेंद्रियों और पांच कर्मेंद्रियों को साधकर आदिदेव भगवान की उपासना कर उनको प्रकट किया।
अपनी रक्षा के लिए दरवाजे के अग्रभाग पर बैठाया
फिर आदिदेव ब्रह्मा जब प्रकट हुए तो माता पार्वती ने कहा कि समस्त कैलाश तारकासुर नाम के दैत्य से भयभीत है। वह मायावी है। छल कपट और दंभ करने में निपूर्ण है। उसे हमारी रक्षा कीजिए और अब आप को मैं आदेश नहीं दे सकती हूं। इसके लिए आपको बाल रूप में प्रकट होना पड़ेगा। भगवान आदि ब्रह्मा बाल रूप में प्रकट हुए। वह उस समय करोड़ों सूर्य के समान दैविद्यामान दिखाई दे रहे थे। अद्भुत आलोकिक छवि माता पार्वती को प्रणाम करते हुए कहने लगे-है मां मुझे आदेश दो। मैं आपकी रक्षा कैसे करूं। माता पार्वती ने आदेश दिया कि आप अपने अस्त्र शस्त्रों के साथ मेरे दरवाजे के अग्र भाग पर बैठ जाइए। यहां बैठकर किसी को भी अंदर आने का साहन न हो। ऐसा कर मेरी रक्षा कीजिए।
ईष्ट देव से निश्चिंत हुई माता पार्वती
अब माता पार्वती निश्चिंत हो गई। क्योंकि उनके ईष्ट स्वयं उनकी रक्षा के लिए प्रकट हो गए। अर्थात ये दस दिन अपने ईष्ट को प्रसन्न करने के सर्वोत्तम दिवस है। इसलिए इस रहस्य को हर मनुष्य को जानना चाहिए। भाद्रपद, शुक्लपक्ष चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक इन दस दिनों में अपने ईष्ट को प्रसन्न करें। ताकि अभिष्ट फल की प्राप्ति हो। जिसके पास अभिष्ट सिद्धी होती है, उनको किसी भी प्रकार का भय नहीं होता है। अब निश्चिंत होकर माता पार्वती अपने घर में स्नान आदि का कार्य करने लगी। अब बाहर द्वार भाग पर आदि देव बैठ गए।
भगवान शिव ने छिपाया आदिदेव के रहस्य को
जैसे ही तारकासुर का वध कर महादेव अपने पुत्र कार्तिकेय व नंदी आदि गणों के साथ जब कैलाश वापस लौटे, तो द्वार पर बैठे इस दिव्य बालक को देख कर सब अचंभित हो गए। जैसे ही शिव घर के अंदर प्रवेश करने लगे तो रक्षक बनकर बैठे आदिदेव ने किसी को भी अंदर जाने की इजाजत नहीं दी। इसी बात को सुनकर सारे शिव गण क्रोधित हो गए। बहुत बड़ा युद्ध हुआ। युद्ध में शिवगण हार गए। भगवान शंकर क्रोधित होकर जब उन्हें द्वार भाग से हटाने लगे तो आदि देव ने उन्हें ललकारा। यह बात सब जानते हैं, जब भगवान महादेव ने ध्यान लगाकर देखा कि यह बालक कौन है, तो तब उन्हें आदिदेव साक्षात ब्रह्म के दर्शन हुए। उन्होंने इस रहस्य को छिपाने के लिए कि देवों के देव आदिदेव के इस रहस्य को कोई न जान सके, उनके भद्र, दिव्य, आलोकिक, तेज अर्थात चेहरे को कोई पहचान न सके, उनके मूल स्वरूप को कोई जान न सके, इसके लिए भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल निकालकर उनका सर धड़ से अलग कर दिया। साथ ही आदिदेव के रहस्य को छिपा दिया।
आदिदेव से ऐसे बने गणनायक
जैसे ही माता पार्वती को पता चला तो माता पार्वती क्रोधित होकर चारों और अपने क्रोध से सभी को भयभीत करने लगी। फिर भगवान देवों के देव महादेव ने बाल रूप रखकर उनके चरणों में गिरकर उनसे सभी के कल्याण के लिए प्रार्थना की। माता पार्वती के शांत होने पर उन्होंने पुनः अपने पुत्र के रूप में प्रकट हुए आदिदेव को पुनः जीवित करने के लिए कहा। इस पर भगवान शंकर ने आदिदेव के रहस्य को छिपाकर उत्तर दिशा में जाकर हाथी के बच्चे का सिर लाकर उस धड़ पर लगा दिया। यह देखकर पुनः माता पार्वती को क्रोध आया, तो भगवान शंकर ने कहा कि यह तुम्मारे पुत्र आज से समस्त देव गणों में अग्रणीय रहेंगे। अर्थात देव गणों के गणनायक होंगे। वही दिन था अनंत चतुदर्शी का। गणेशजी गणों के गणनायक बने, विघ्नहर्ता बने, मंगलकर्ता बने, लेकिन उस मूल रूपी चेहरा, जो कि करोड़ों सूर्यों के समान देव विद्यामान था, उसके रहस्य को छिपाकर हाथी का सिर लगा दिया।
गणेशजी के शरीर की व्याख्या
अर्थात यह बताते हुए कि जो इन दस दिनों तक अपने ईष्ट की उपासना करता है, वो एक दिन लीडरशिप करता है। यानी कि नायक बनता है। उसके सारे विघ्न समाप्त होते हैं और उसके जीवन में मंगल ही मंगल होता है। गणेशजी का सूंड ग्राण शक्ति प्रतीक है। अर्थात ग्रहण करने की क्षमता होनी चाहिए। गणेशजी का उदर बड़ा है। अर्थात ग्रहण करने के बाद पचाने की क्षमता होनी चाहिए। गणेशजी की कान बड़े हैं। अर्थात श्रेष्ठ बातों को श्रवण करने की क्षमता होनी चाहिए। साथ ही जीवन में बुरी बातों को दूर करने की शक्ति होनी चाहिए। गणेशजी की आंखे बहुत छोटी हैं। अर्थात वह सबको बराबर दृष्टि से देखते हैं। समान दृष्टि से सबको देखने के भाव का वह संदेश दे रहे हैं।
गणेश उत्सव देता है ये संदेश
इन दस दिनों में गणेशजी की पूरा का अभिप्राय उनके गुणों को अपने चरित्र में उतारने के लिए है। परस्पर एक दूसरे के कल्याण के बारे में सोचें। उनको विघ्नहर्ता कहा गया है। कि आप किसी के जीवन में न तो विघ्न डालें, हो सके तो दूसरों के विघ्न को दूर करें। अर्थात किसी के लिए विघ्नहर्ता बनें। शुभकार्यों में लोगों की मदद करें। इसीलिए उनको मंगलकर्ता कहा गया है। गणेशजी की पूरा का सीधा सीधा अभिप्राय स्वयं को अनंत गुणों से पूर्ण करने का है।
कोई भी पूजन गणेश पूजन के बगैर अधूरा
भगवान विष्णु के विवाह में भी भगवान गणेशजी का पूजन किया गया। महादेव की शादी में भी गणेशजी का पूजन किया गया। ब्रह्मा जी की शादी में भी गणेशजी की पूजा की गई। साथ ही सभी देव और मनुष्य के मंगल कार्य बिना गणेश जी की पूजा के पूरे नहीं होते। इसीलिए इन्हें पूर्ण पुरुष परमब्रह्मा भी कहा गया है।
ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते,
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते।
ॐ शांति: शांति: शांतिः
अर्थात, वह जो दिखाई नहीं देता है, वह अनंत और पूर्ण है। यह दृश्यमान जगत भी अनंत है। उस अनंत से विश्व बहिर्गत हुआ। यह अनंत विश्व उस अनंत से बहिर्गत होने पर भी अनंत ही रह गया। इसीलिए देवों के देव आदिदेव गणेश भी अनंत हैं।
आचार्य का परिचय
आचार्य डॉ. संतोष खंडूड़ी
(धर्मज्ञ, ज्योतिष विभूषण, वास्तु, कथा प्रवक्ता)
चंद्रविहार कारगी चौक, देहरादून, उत्तराखंड।
फोन-9760690069
-9410743100
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।