आज मंदिर नहीं, बल्कि विचारों के जीर्णोद्धार की जरूरतः रसिक महाराज
कोरोनाकाल में संत महात्माओं ने भी भक्तों तक संदेश पहुंचाने का सबसे उपयुक्त जरिया वर्चुअली संदेश का तलाश लिया है। अब सामने श्रद्धालों को बैठाने की बजाय वीडियो संदेश या वर्चुअली जुड़कर प्रवचन किए जा रहे हैं। नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज भी निरंतर श्रद्धालुओं से जुड़कर उन्हें आध्यात्मक ज्ञान का अमृतपान पिलाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। रसिक महाराज ने इस दौरान एक बड़ी बात ये कह दी कि अब मंदिर नहीं, बिचारों के जीर्णोद्धार की जरूरत है।
कोरोनाकाल में एकांतवास पर चल रहे नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने वर्चुअल प्रवचन करते हुए बताया कि पथ भ्रमित हो चुके समाज को आज संस्कार, चरित्र से ज्यादा नीति शिक्षा की जरूरत है। दरअसल, व्यक्ति का भोजन ही नहीं विचार भी तामसिक हो चुके हैं। इससे उसके दिलो-दिमाग में सिर्फ अपना स्वार्थ छाया रहता है। लिहाजा आज मंदिर नहीं, बल्कि विचारों के जीर्णोद्धार की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि पूरा देश ध्वनि प्रदूषण व वायु प्रदूषण से बचने के उपाय खोजने में लगा है। इससे बड़ी समस्या मनोप्रदूषण की है। हंसते हुए महाराजश्री ने कहा कि गांधीजी ने तीन बंदर बनाए थे। उनको एक बंदर और बनाना था जो अपने हृदय पर हाथ रखे होता और संदेश देता कि बुरा मत सोचो। इसीलिए आज मनुष्य के विचारों में आ रहे बदलाव में सुधार की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि स्थिति ये हो चुकी है कि हमारी प्रार्थना भी तामसिक हो चुकी है। हम भगवान से केवल अपने और परिजनों का ही सुख चाहते हैं। दुनिया के बारे में कभी भला नहीं मांगते। ऐसी प्रार्थना ही तामसिक होती है। आज लोगों में करुणा का भाव कम होता जा रहा है। मानवीय संवेदनाएं कम हो चुकी हैं। बड़े से बड़े हादसे की खबर लोग चाय की चुस्की के साथ पढ़ या सुन लेते हैं। इन हादसों की खबरों से उनके हाथ की प्याली नहीं गिरती। दिल की संवेदनाएं मरना देश व समाज के लिए अच्छा नहीं है। जब हम एक-दूसरे के दुख-दर्द को समझेंगे, तभी अमन-चैन की परिकल्पना को साकार किया जा सकता है।
परिचय
नृसिंह पीठाधीश्वर अनंत श्री विभूषित स्वामी रसिक महाराज ( प्रवक्ता अठारह पुराण, वेद वेदांत)
परमाध्यक्ष ज्योतिर्मठ बद्रिकाश्रम हिमालय,
नृसिंह वाटिका आश्रम रायवाला हरिद्वार उत्तराखंड।
नृसिंह कुटिया सैक्टर 40 चंडीगढ़
सम्पर्क- 9872751512, 9411190555
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।