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November 16, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई रोक, हल्द्वानी की बस्तियों में नहीं चलेगा बुलडोजर, कहा- समाधान के ये तरीका नहीं

उत्तराखंड के हल्द्वानी में अतिक्रमण पर फिलहाल बुलडोजर नहीं चलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाते हुए नोटिस जारी कर रेलवे और उत्तराखंड सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि आप सिर्फ 7 दिनों में खाली करने के लिए कैसे कह सकते हैं? हमें कोई प्रैक्टिकल समाधान ढूंढना होगा। समाधान का ये यह तरीका नहीं है। कोर्ट ने कहा कि रातोंरात 50 हजार लोगों को बेघर नहीं किया जा सकता है। जमीन की प्रकृति, अधिकारों की प्रकृति, मालिकाना हक की प्रकृति आदि से उत्पन्न होने वाले कई कोण हैं, जिनकी जांच होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने उस जमीन पर आगे के निर्माण कार्य और विकास कार्य पर रोक लगाई है। सात फरवरी को इस मामले में अगली सुनवाई होगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

हाईकोर्ट ने दिए थे बस्तियों को हटाने के आदेश
गौरतलब है कि उत्तराखंड के नैनीताल जिले के हल्द्वानी में बनभूलपुरा व गफूर बस्ती में रेलवे की 78 एकड़ जमीन से 4365 अवैध कच्चे-पक्के भवनों को हटाने के लिए हाईकोर्ट ने आदेश दिए थे। बीजेपी संगठन और सरकार दोनों ने ऐसे लोगों के पुनर्वास आदि के मुद्दों से किनारा कर लिया था। कांग्रेस सहित अन्य दलों के लोगों का कहना है कि मानवीय दृष्टिकोण के मद्देनजर सरकार को इस मुद्दे को सुलझाया जा सकता है। ऐसे लोगों के कहीं और बसाया जा सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

रेलवे की जमीन पर हैं ये बस्तियां
दरअसल, अतिक्रमण हटाने की यह कवायद 2007 में हो गई थी लेकिन तब रेलवे अपनी भूमि खाली नहीं करा सका था। अब नैनीताल हाई कोर्ट के सख्त आदेश के चलते 16 साल बाद बदले हालात में अतिक्रमण के बढ़ चुके दायरे को आठ जनवरी के बाद ध्वस्त करने की तैयारी हो चुकी थी। अतिक्रमण हटाने से 4365 घरों के करीब 50 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित होंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

90 फीसद मुस्लिम परिवार
नभूलपुरा व गफूर बस्ती मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। यहां 90 फीसद मुल्लिम परिवार हैं। हालांकि, अतिक्रमण की जद में सिर्फ यही समुदाय नहीं है। यहां 35 हिंदू परिवार भी अतिक्रमणकारियों में शामिल हैं। सभी लोग घरों को बचाने के लिए राज्य सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं। बताया जा रहा है ये परिवार करीब 50 साल से ज्यादा उक्त भूमि पर बसे हैं। यहां नगर पालिका की ओर से सारी सड़क, सफाई आदि की सारी सुविधाएं दी हैं। बिजली, पानी की मूलभूत सुविधा के साथ ही इस क्षेत्र में तीन सरकारी स्कूल, 11 निजी स्कूल, 10 मस्जिद, 12 मदरसे, एक मंदिर, एस पीएचसी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सामाजिक कार्यकर्ता और नेता भी विरोध में
सामाजिक कार्यकर्ता और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की ओर से इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में औपचारिक उल्लेख किए जाने के बाद चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसए नजीर और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा था कि इस पर गुरुवार को सुनवाई होगी। प्रदर्शनकारी एक ऐसे क्षेत्र में कार्रवाई के लिए बीजेपी सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं, क्योंकि यहां के अधिकांश निवासी मुस्लिम हैं। सामाजिक कार्यकर्ता और नेता भी विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गए हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

याचिकाकर्ताओं के वकील ने दी ये दलील
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओक की बेंच ने इस केस की सुनवाई की। याचिका कर्ताओं की ओर से कॉलिन गोंजाल्विस ने बहस की। उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश के बारे में बताया और कहा कि ये भी साफ नहीं है कि ये जमीन रेलवे की है। हाईकोर्ट के आदेश में भी कहा गया है कि ये राज्य सरकार की जमीन है. इस फैसले से हजारों लोग प्रभावित होंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

एएसजी ने दिया ये तर्क
सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे की ओर से पेश ASG ऐश्वर्या भाटी से पूछा कि क्या रेलवे और राज्य सरकार के बीच जमीन डिमार्केशन हुई है? वकील ने कहा कि रेलवे के स्पेशल एक्ट के तहत हाईकोर्ट ने कार्रवाई करके अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया है। ASG ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि कुछ अपील पेंडिंग हैं, लेकिन किसी भी मामले में कोई रोक नहीं है। रेलवे की जमीन पर 4365 अवैध निर्माण हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ये मानवीय मामला, उनके पुनर्वास के लिए भी होनी चाहिए योजना
कोर्ट ने कहा कि आप केवल 7 दिनों का समय दे रहे हैं और कह रहे हैं कि खाली करो। ये मानवीय मामला है. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से भी पूछा कि लोग 50 सालों से रह रहे हैं, उनके पुनर्वास के लिए भी कोई योजना होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि भले ही यह आपकी जमीन हो, कुछ लोगों ने कहा है कि वो 1947 से पहले से हैं। उन्होंने लीज पर जमीन ली और मकान बनाए। किसी ने नीलामी में खरीदा। उनका क्या होगा। विकास की अनुमति दी जानी चाहिए, लेकिन लोग इतने लंबे समय तक रुके रहे तो पुनर्वास की अनुमति दी जानी चाहिए। आप 7 दिनों में खाली करने के लिए कैसे कह सकते हैं? (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इधर रेलवे की भूमि में बने 4,000 से ज्यादा घरों में रह रहे लोगों का विरोध प्रदर्शन जारी है। उन्होंने अधिकारियों से तोड़फोड़ नहीं करने की प्रार्थना की है। हल्द्वानी में घरों के अलावा, लगभग आधे परिवार भूमि के पट्टे का दावा कर रहे हैं। इस क्षेत्र में चार सरकारी स्कूल, 11 निजी स्कूल, एक बैंक, दो ओवरहेड पानी के टैंक, 10 मस्जिद और चार मंदिर हैं। इसके अलावा दशकों पहले बनी दुकानें भी हैं। यह भूमि की पट्टी दो किलोमीटर लंबी है जो कि हलद्वानी रेलवे स्टेशन से बनभूलपुरा इलाके में गफूर बस्ती, ढोलक बस्ती और इंदिरा नगर तक फैली है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कांग्रेस ने किया स्वागत
उत्तराखंड कांग्रेस के अध्यक्ष करण माहरा, उपाध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य, उपनेता भुवन कापड़ी, हल्द्वानी के विधायक सुमित हृदेयेश और कांग्रेस महामंत्री संगठन विजय सारस्वत ने कथित हल्द्वानी बनभूल पुराअतिक्रमण प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय की ओर से वहां के चार हजार परिवारों को बेदखल किए जाने के हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने पर न्यायालय का आभार व्यक्त किया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला मानवीय दृष्टि से सही दिशा में उठाया गया सही कदम है। भारी सर्दी के इस मौसम में पिछले 50 साल से रह रहे लोगों को बेघर किया जा रहा था। कांग्रेस के सभी नेताओं ने उम्मीद जाहिर की है कि सुप्रीम कोर्ट अगली तारीख में भी जन आकांक्षाओं के अनुरूप अपना निर्णय जारी रखेगा। उच्चतम न्यायालय ने प्रभावित परिवारों को फौरी तौर पर राहत दी है। उम्मीद की जा सकती है कि आगे भी 50 साल पहले से बसे हुई इन परिवारों को कोई बेहतर न्याय पूर्ण फैसला मिलेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

आम आदमी पार्टी ने कहा-प्रभावित परिवारों के साथ खड़े हैं मजबूती से
आज आम आदमी पार्टी प्रदेश समन्वयक जोत सिंह बिष्ट ने कहा कि हल्द्वानी के बनभूलपुरा में हाई कोर्ट के एक आदेश की वजह से 4000 से अधिक परिवार बेदखली के कगार पर थे। उनको आज उच्चतम न्यायालय के द्वारा राहत प्रदान करते हुए माननीय हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए राज्य सरकार और रेलवे से जवाब दाखिल करने का आदेश जारी करके बेदखली की चिंता में डूबे हुए परिवारों को राहत देने का मानवीय फैसला जारी किया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने जिस तरह से अपने फैसले में प्रभावित परिवारों को फौरी तौर पर राहत दी है, उससे उम्मीद की जा सकती है कि आगे भी 50 साल पहले से बसे हुई इन परिवारों को कोई बेहतर न्याय पूर्ण फैसला मिलेगा। राज्य सरकार इस मामले में अपनी जवाबदेही से पूरी तरह से बचती हुई दिखाई दे रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

आम आदमी पार्टी ने कहा कि बनभूलपुरा गफूर बस्ती के बेदखली की मार से प्रभावित परिवारों के साथ मजबूती से खड़ी है। आज आप पार्टी के नेता जगतार सिंह बाजवा के नेतृत्व में पार्टी का एक शिष्टमंडल प्रभावित परिवारों से मिलने गया। शिष्टमंडल ने उनकी परेशानियों को समझने के साथ-साथ किसी भी प्रभावित परिवार को अगर कानूनी मदद की जरूरत होगी तो हमारी लीगल टीम उनको कानूनी सहायता प्रदान करेगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार उच्चतम न्यायालय के फैसले का पालन करने का आश्वासन देकर के प्रभावित परिवारों को राहत देने से बच रही है। आम आदमी पार्टी माननीय मुख्यमंत्री और राज्य सरकार से विनम्र आग्रह करती है कि 50,000 की आबादी को इस तरह से रातों-रात बेदखली की कार्रवाई करने के बजाय इन परिवारों को यथावत स्थिति में रखने हेतु सुप्रीम कोर्ट ने इनके पक्ष में मजबूत पैरवी करने का काम करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट फैसला अगर इन के पक्ष में नहीं आता है तो ऐसी दशा में राज्य सरकार को सभी प्रभावित परिवारों को पहले बसाना चाहिए, उसके बाद उस जगह को खाली कराना चाहिए। पार्टी की यह भी मांग है कि अवैध बस्तियां बसाने वाले राजनेताओं से लेकर अधिकारियों कर्मचारियों की पड़ताल करके उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाय।

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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