नस्ल और जातीय आधार पर यूनिवर्सिटी एडमिशन में इस देश की सुप्रीम कोर्ट ने खत्म किया आरक्षण, भारतीय मूल के नेता ने की निंदा
आरक्षण भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी है। ऐसा ही आरक्षण को लेकर एक बड़ी खबर सामने आई है। ये खबर है कि अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को यूनिवर्सिटी एडमिशन में नस्ल और जातीयता के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे दशकों सकारात्मक भेदभाव कही जाने वाली पुरानी प्रथा को बड़ा झटका लगा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
फैसले से अफ्रीकी-अमेरिकियों व अन्य अल्पसंख्यकों को शिक्षा के अवसरों के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स ने बहुमत की राय में लिखा कि छात्र के साथ एक व्यक्ति के रूप में उसके अनुभवों के आधार पर व्यवहार किया जाना चाहिए, नस्ल के आधार पर नहीं। कोर्ट के फैसले पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा कि इसने हमें यह दिखाने का मौका दिया कि हम मेज पर एक सीट से कहीं अधिक योग्य हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूनिवर्सिटी किसी आवेदक के व्यक्तिगत अनुभव पर विचार करने के लिए स्वतंत्र है। चाहे, उदाहरण के लिए अपने आवेदन को अकादमिक रूप से अधिक योग्य आवेदकों से अधिक महत्व देते हुए वे नस्लवाद का अनुभव करते हुए बड़े हुए हों। रॉबर्ट्स ने लिखा, लेकिन मुख्य रूप से इस आधार पर निर्णय लेना कि आवेदक गोरा है, काला है या अन्य है, अपने आप में नस्लीय भेदभाव है। उन्होंने कहा, “हमारा संवैधानिक इतिहास उस विकल्प को बर्दाश्त नहीं करता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कोर्ट ने एक एक्टिविस्ट ग्रुप स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशंस का पक्ष लिया। इस ग्रुप ने देश में उच्च शिक्षा के सबसे पुराने निजी और सार्वजनिक संस्थानों, खास तौर पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और उत्तरी कैरोलिना यूनिवर्सिटी (UNC) पर उनकी एडमिशन की नीतियों को लेकर मुकदमा दायर किया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
रिपब्लिकन सहित पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस फैसले की सराहना की है और वहीं डेमोक्रेट्स ने इसकी निंदा की है। भारतीय मूल के कांग्रेसी रो खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की निंदा की है। रो खन्ना ने एक इंटरव्यू में कहा कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने इस देश के फ्यूचर लीडर्स के साथ “भयानक अन्याय” किया है। इस बारे में बात नहीं की जा रही है कि इससे छात्रों को कैसे नुकसान होगा, न केवल ब्लैक या लातीनी छात्रों को, बल्कि श्वेत और एशियाई अमेरिकी छात्रों को भी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि हार्वर्ड जाने वाले उन छात्रों पर विचार करें जो इस देश के भविष्य के राजनीतिक नेता, भविष्य के राष्ट्रपति, सीनेटर बनना चाहते हैं। आपको लगता है कि उनके पास ऐसा करने का बेहतर मौका होगा, यदि वे उन कक्षाओं में हैं जिनमें अफ़्रीकी अमेरिकी या लैटिनो का प्रतिनिधित्व नहीं है। खन्ना ने एमएसएनबीसी को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि वे (सर्वोच्च न्यायालय) बहुजातीय लोकतंत्र में इस देश के भावी नेताओं के साथ भयानक अन्याय कर रहे हैं।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।