दीवाना गुरु की जितनी बढ़ी दीवानगी, लोगों में उतनी बढ़ती रही नफरत, आखरी सांस तक नहीं छोड़ पाए आदत
किसी भी काम को पूरा करने के लिए दीवाना गुरु की तरह दीवानगी तो हो, लेकिन काम दीवाना गुरु की तरह का न हो। उसे देखकर तो सभी नफरत करने लगे थे।

देहरादून में एक मोहल्ला ऐसा भी था, जहां दीवाना गुरु फेमस हो चुके थे। जब वह दूर से किसी को नजर आते तो लोग रास्ता बदल देते। पहले गुरु को जो सम्मान मिलता था, बाद में लोग उन्हें दुत्कारने लगे। वो मजबूर क्या करे, जो अपने दिल पर कंट्रोल ही नहीं रख पा रहे थे। दीवाना गुरु का दोष क्या था। सिर्फ इतना कि उन्होंने किसी से सच्चा प्यार किया था। पर बदले में मिली उन्हें नफरत। ऐसी नफरत जो उनकी मौत के बाद ही दूर हुई होगी।
दीवाना गुरु। यानी इंटरमीडिएट कॉलेज में एक शिक्षक। जिनके नाम में गुरु के संबोधन से पहले दीवाना जुड़ गया। करीब 14 साल पहले इस इस शिक्षक के पास बच्चों की ट्यूशन के लिए मारामारी होती थी। गुरु पढ़ाते थे तो दीवानगी ही हद तक। यहां तक तो गुरु का काम ठीक था, लेकिन एक शिष्य छात्रा को दिल दे बैठे। प्यार एकतरफा था। गुरु के प्रस्ताव को छात्रा ने इंकार कर दिया। ट्यूशन छोड़ दी, लेकिन गुरु तो उसका दीवाना हो चुका था। बच्चों को पढ़ाने में गुरु का मन नहीं लगता। उनका समय छात्रा का पीछा करने में ही बीतने लगा।
स्थिति यहां तक पहुंच गई कि गुरुजी छात्रा की एक झलक देखने के लिए उसके घर के आसपास हर सुबह, दोपहर व शाम को चक्कर लगाते। समय बीता छात्रा जवान हुई और गुरुजी अधेड़। पीछा छुड़ाने के लिए कई मर्तबा मोहल्ले के लोगों ने गुरु की पिटाई भी की, लेकिन हरकत नहीं सुधरी। कितना पतन हुआ इस समाज का, जिस गुरु को दूसरों को ज्ञान देना था, वही ज्ञान के लिए मोहताज था। छात्रा के मोहल्ले के लोगों ने गुरु का नाम दीवाना गुरुजी रख दिया। इस नाम से उसे बच्चा -बच्चा पहचानने लगा।
मां-बाप ने गुरु से प्रताड़ित बेटी का विवाह कर दिया। इसके बाद भी गुरु ने सुबह शाम इस महिला के ससुराल के चक्कर लगाने जारी रखे। घर से कुछ दूर दीवाना गुरु खड़े होकर अपनी पूर्व शिष्या की एक झलक देखने को आतुर रहता। समय ने फिर करवट बदली। महिला के पति की मौत हो गई। दीवाना गुरु ने उससे फिर विवाह का प्रस्ताव रखा। महिला ने फिर इंकार किया। वह तो दीवाना गुरु की दीवानगी के तरीके से ही नफरत करती थी।
पति की मौत के बाद इस महिला की पति की जगह सरकारी नौकरी लग गई। उसने किसी दूसरे से विवाह भी कर लिया। बच्चों की मां भी बनी। उधर, दीवाना गुरु विक्षिप्त सा रहने लगा। नौकरी चली गई। चेहरे पर दाढ़ी बड़ी रहती। सुबह महिला के घर से दफ्तर तक जब जाती तो दीवाना गुरु उसकी मोपेड के पीछे दौड़ काफी दूर तक दौड़ लगाता। शाम को छुट्टी के समय महिला के दफ्तर के गेट के आगे खड़ा हो जाता था। जब तक महिला नहीं दिखाई देती तो दीवाना गुरु की चहलकदमी बड़ जाती। तेजी से सिगरेट के कश लगाता। जैसे ही महिला की मोपेड नजर आती तो उछलकर उस दिशा की तरफ जाती किसी भी व्यक्ति की साइकिल या स्कूटर के पीछे बैठ जाता। साथ ही कुछ दूर आगे छोड़ने का आग्रह करता था दीवाना गुरु। मकसद महिला का चेहरा देखना होता था।
एक दिन इसी पीछा करने के फेर में दीवाना गुरु दुर्घटना का शिकार हुए और अपनी टांग तुड़वा बैठे। दीवाना गुरु बिस्तर पर और एक पूरे पांव में प्लास्टर। शायद महिला खुश थी कि चलो कुछ राहत मिली। पर दीवाना गुरु भी पक्के ढीट। कुछ दिन बिस्तर पर रहने के बाद लंबें बांस के डंडे का सहारा लेकर फिर से पांव में पलस्टर समेत ही महिला के घर के चक्कर लगाने लगे। वह दूर से देर रात तक महिला की झलक देखने को बेताब रहते। यह क्रम तब तक जारी रहा, जब तक दीवाना गुरु की मौत नहीं हो गई।
इस मौत के बाद महिला ने युवावस्था से झेल रही त्रास्दी से छुटकारा पाया। वहीं दीवाना गुरु की दीवानगी की कहानी का भी अंत हो गया। हर एक की नजर में दीवाना गुरु गलत था। प्रेम के इजहार का उसका तरीका भी गलत था, लेकिन क्या महिला अपनी जगह सही थी। जो इस दीवाने की भावनाओं को नहीं समझ पाई। या फिर वह अपनी भावनाओं से समझाकर दीवाने की गलतफहमी को दूर नहीं कर सकी।
भानु बंगवाल
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।