शिक्षिका उषा सागर की गीतमय शैली की कविता-बांझा गौं की पीड़ा

बांझा गौं की पीड़ा
दौड़ी दौड़ी सरासर
ऊंधार्यूं का बाटा,ऊंधार्यूं बाटा
चलि ग्यांवा दूर तुम
दूर म्यारा लाटा दूर म्यारा लाटा
सैणि सैध्वारी जैकि
द्वि दिनों का ठाठ
तुमुथै खुज्यांणु रैंदु
त्यारा गौं कु बाटु
क्वी नि रयूं घौरुं अब
सूना पड्या गौं की कूडि बाड़ी
दाना स्यांणा द्यखदा रैंदी
औंदी जांदी गाड़ी
अब त घौरुं आवा तुम
आवा म्यारा लाटा
दौड़ी दौड़ी सरासर
उंधार्यूं का बाटा ऊधार्यूं का बाटा
चलि ग्यांवा दूर तुम
दूर म्यारा लाटा दूर म्यारा लाटा
गौं कि टुटदीं कुड्यों
अब तुम बचावा
बांझी पड्यां पुगड्यों
हैरि भैरी बंणावा
चौक टपराणु त्यारु
सूनी पणी कूडी
धुरपळा मा नचण लग्यां
दिन रात गूंणी
ऐकि अपणी कूड्यों मा
गूंण्यों भगौ लाटा
दौड़ी दौड़ी सरासर
उंधार्यूं का बाटा ऊधार्यूं का बाटा
चलि ग्यांवा दूर तुम
दूर म्यारा लाटा दूर म्यारा लाटा
आंणु च तिज तिवार
दिवळी बग्वाळ
दाना स्याणा गौं का सब
कना छीं जग्वाळ
ऐकि घौरुं मा तुम कूड्यों सजावा
पुरणी यादों थै फिर तुम ल्यावा
चौक सूनु पड्यूं सूनी त्येरी जदरी
भ्यैर लग्यु चटयळु घाम
भ्यतरि त्येरी अंध्यारी
क्वी नि सुणुद यूं कि विपता खैरी
कुड़ी नि अब कखि निरै तिबैरी
देशु परदेशु जैकि भूल्यां घरु बाटा
दौड़ी दौड़ी सरासर
उंधार्यूं का बाटा ऊंधार्यू का बाटा
चलिए ग्यांवा दूर तुम दूर म्यारा लाटा
कवयित्री का परिचय
उषा सागर
सहायक अध्यापक
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गुनियाल
विकासखंड जयहरीखाल, जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।