शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता-क्या क्या लिखूँ
क्या क्या लिखूँ
आज मेरे दर्वित हृदय में उठ रही,
क्यों एकअजीब हूक सी।
क्या क्या लिखूँ,
किस किस पर लिखूँ।
या लिखूँ आज के बदलते हालातों पर।
क्या क्या लिखूँ मैं,
उन मासूम परिंदो पर।
कैद किया इंसा ने जिन्हे,
सख्त लोहे के पिंजरो में।
या लिखूँ कैद करने वाले इंसानों पर।।
क्या क्या लिखूँ मैं फिर,
उस नन्ही सी जान पर।
कोख में ही मार डाला जिसे
इंसानों ने बेटों की चाह में।
या लिखूँ माँ की खामोशी पर।।
कोई तो बताये किस पर लिखूँ,
लुटती हुई बहिन बेटियों की आबरू पर।
लूट रहे बेखौफ इंसानियत के दुश्मन जिसे,
अपनी खुद की प्यास बुझाने के लिए।
या लिखूँ कोख को दागदार करने वालों पर।।
आखिर क्या क्या लिखूँ मैं,
अगवा होते उन मासूमों पर।
कत्ल कर दिये जाते चंद पैसों के लिए,
इंसा की अपनी अय्याशी के लिए।
या लिखूँ इन दरिंदो की हैवानियत पर।
या फिर लिखूँ,
उन समाज के ठेकेदारों पर।
जो धर्म और जाति के नाम पर,
लड़ाते रहते बेवजह।
या लिखूँ ऊँच नीच के भेद पर,
या फिर लिखूँ,
जो कत्ल करते इंसा को मंदिरों में।
या लिखूँ इंसानों के भेद करने पर।।
या लिखूँ उन पर,
जो वक्त और हालात के सताये हैं।
या जो बेबस हैं उनकी मजबूरियों पर,
या दर दर भटकते बेरोजगारों पर।
पर अब लिखना ही पड़ेगा,
मूक बने सत्ता धारियों पर।।
या फिर लिखूँ,
उन भूख प्यास से तड़पते मासूमों पर।
भूख से रोते बिलखते लोगों पर,
या पानी से पेट की आग बुझाते लोगों पर।।
या फिर लिखूँ ?
उन सौदागरों पर,
जो बेच देते चंद कागज के टुकड़ो में।
माँ बेटी बहिन की आबरू,
क्या क्या लिखूँ उन सौदागरों पर।।
या लिखूँ उन आतंकियो पर,
जो बेवजह जान लेते बेकसूरों की।
खुद भी खड़े जो बारुदों के ढेरों पर,
या लिखूँ सीमा पर अडिग खड़े वीरों पर।
जो खुशी खुशी जान अपनी,
न्यौछावर कर देते अपने वतन पर।।
या लिखूँ उन दुश्मनों पर जो,
कोरोना में जो बेच रहे थे हवा।
थम रही थी साँसे,
तड़प रहे थे अपनों के इंतजार में
या जो बेच रहे थे हवा,
क्या लिखूँ मैं उनकी करतूतों पर।।
पर रुकेगी नही ये मेरी कलम,
लिखती रहेगी आज के हालातों पर।
पर सोच रहा दिल से मैं,
क्या विश्वाश करेंगे लोग यहाँ,
स्याही भरी कलम की ताकत पर।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।