शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता-नसुलझी गुत्थी
नसुलझी गुत्थी
मंजर तो बहुत देखे हमने,
लम्हें ये बीत ही जाएंगे।
अमल कर हर बात पर इंसान,
क्या शत्रु से हम जीत पाएंगे।।
घर के अंदर अपनों संग हम,
क्या कुछ पल हम ठहर पाएंगे।
बाहर हिंसा पत्थरबाजी क्यों,
शायद ही हम कभी भुला पाएंगे।।
बस अब जरा सोच मन में इंसान,
हम नफरतें दिलों से दूर कर पाएंगे।
जाति धर्म ऊंच नीच की रेखा,
क्या हम अपने दिलों से हटा पाएंगे।।
कोरोना नहीं पहचानता किसी को यहां,
कहता हम तुम्हे सबक सिखाएंगे।
भेद किया जो इंसा,इंसा में तो,
फिर नहीं कभी मुझे हरा पाएंगे।।
क्या क्या नहीं देखा हमने यहां पर
जीवनभर नहीं उसे भुला पाएंगे।
जीवन की अनसुलझी गुत्थियां,
शायद क्या कभी हम सुलझा पाएंगे।।
डरा डरा, सहमा सा हर आदमी,
क्या हम अपनों को छू पाएंगे।
आज छूने से डर रहे जिन्हें हम,
उनके विश्वास को क्या जीत पायेंगे।।
आखिर इतने बेबस क्यों हैं हम,
क्या हम इस पर कुछ सोच पाएंगे।
ना दिखे फिर ये आत्मघाती मंजर,
सोचें हम क्या कुछ कर पाएंगे।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।