शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता-प्यार की माला
प्यार की माला
मन में हिलोरे मारते,
कुछ टूटे बिखरे शब्दों का।
कुछ महक बिखेरते फूलों का,
सोचती हूँ बना लूँ एक पुष्प माला,
पर स्वीकार करेंगी क्या वे,
जिसके लिए हिय का,
प्रेम गूँथकर माला में डाला।।
पर डर लगता है मुझे,
कहीं वे क्रोधित न हो जाएं।
भेंट जब ले जाऊँ माला,
तो कहीं उनके,
नयनों से न निकले क्रोध की ज्वाला।।
फिर भी डर लिए हिय में,
मैं पहुँ ची द्वार उनके।
संकुचाई सी जुबान पर लगाए ताला,
बहुत व्याकुल सी हिय में,
अर्पित करने चल पड़ी लिए माला।।
माला अर्पित करने लगी ज्योहि,
तो देखा अरे!
इतना प्यार मेरे लिए उनके हिय में।
खींच मेरे हाथों से माला,
शशि मुख से बार बार उसे चूम डाला।
आश्चर्य चकित मूक हो गयी मैं,
ये क्या दृश्य मेरे हिय ने देख डाला।
मैंने उनके इस प्यार का भार,
लिए समेटकर अपने आँचल में डाला।।
उनका यह प्यार खाली नही था,
क्योंकि नौ माह मुझे कोख़ में था पाला।
नाराजगी दूर हो चुकी थी उनकी,
लिपटकर मुझे अपने हिय से,
माँ ने जोरों से भींच डाला।।
जोरों से भींच डाला, भींच डाला
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।