शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता-बिना पेपर दिये परीक्षा पास हो गयी
खोखली नींव
लगता था आज सारे जहाँ की,
खुशी बेशुमार हो गयी।
नहीं दी परीक्षा अपने लिए,
फिर भी खुशियों की बहार हो गयी।।
जिसे नहीं था खुद पर भरोशा,
उसकी तो मुराद पूरी हो गयी।
हँस हँस कर लोट पोट हो रहा था वो,
उसकी नैय्या भी पार हो गयी।।
नही लिखा था कोई भी प्रश्न उत्तर,
उसकी परीक्षा भी पास हो गयी।
आज नब्बे परसेंट पाकर अंक उसकी,
अगली कक्षा कुछ खास हो गयी।।
पर वो बेचारा भी करे तो क्या करे,
जब सबकी जुबानें भी चुप हो गयी।
माता पिता सरकारें भी चुप बैठें हैं,
इसीलिए परीक्षा बिना जिंदगी पास हो गयी।।
बस दुःख था केवल मुझे गुरु के नाते,
ये ऐसी क्या बात हो गयी,
बच्चों की खोखली नींव देखकर,
क्यों उनकी परीक्षा पास हो गयी।।
क्या ऐसा ही भविष्य सोचा था हमने,
आनलाईन ही उनकी क्लास हो गयी,
भविष्य में होने वाला पतन देखकर,
लगता जिंदगी उनकी नाश हो गयी।।
समझो जानों जाग जाओ अब तुम,
यूँ ही क्यों परीक्षा पास हो गयी।
क्या यही भविष्य है उन मासूमों का,
बिना पेपर दिये परीक्षा पास हो गयी।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।