शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता-किसान के दुश्मन
किसान के दुश्मन
जीव जंतु हो या मानव यहाँ,
तेज हवा हो या आंधी तूफान।
वर्षा हो या सूर्य की गरम तपन,
सुखा देते सभी किसान का मन
आखिर फिर सभी क्यों हैं?
किसान के दुश्मन।।
बहाकर वो अपना खून पसीना,
मेहनत करता रहता हर पल हर दिन।
कौन कौन हैं उसके जान के दुश्मन,
फिर क्यों गँवा देता वो अपना तन मन।
आखिर फिर सभी क्यों हैं?
किसान के दुश्मन।।
मेहनत करके ही वो बेचारा,
पहुँचाता रहता अनाज और अन्न।
समझो उसके मन की पीड़ा,
करता वो आबाद धरती का तन।
आखिर फिर सभी क्यों हैं?
किसान के दुश्मन।।
साथ देंगे किसान का जब हम,
बचा रहेगा तभी जन जीवन।
उगा न पाए गर अनाज किसान तो,
बंजर होगा धरती का तन।
आखिर फिर सभी क्यों हैं?
किसान के दुश्मन।।
सोचो समझो मनन कर इंसा यहाँ,
धन दौलत से नही बनता तन।
खायेंगे आखिर अनाज ही हम,
जिससे बनेगा ताकतवर हमारा बदन।
आखिर फिर सभी क्यों हैं?
किसान के दुश्मन।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।