शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता-हम भी तो पत्थर जैसे
हम भी तो पत्थर जैसे
पत्थर तेरी क्या गजब कहानी,
कहीं तू इमारत की नींव बन बैठा।
सहता गया छैनी की मार जब,
फिर तू एक सुंदर मूरत बन बैठा।
सह न सका छैनी की मार जब,
वहीं तू टूटा पत्थर बन बैठा।
जिस पत्थर को इंसान ने तरासा,
वहीं तू भगवान भी बन बैठा।।
जिसे तरासा खुद तूने भगवान,
कहीं क्यों वो हैवान बन बैठा।
अजब दास्तां है इंसानों की भी,
न जानें वो क्या क्या बन बैठा।।
वाह!क्या दास्तान है पत्थरों की भी,
कहीं तू ताजमहल पर जा बैठा।
कहीं तू सजता मन्दिरों में तो,
कहीं तू क्यों खंडहर बन बैठा।।
तेरी दास्तान भी क्या गजब पत्थर
कहीं तू घर की दीवार बन बैठा।
बह गया समय की धारा में जब,
कहीं तू किसी की जिंदगी बन बैठा।।
टकरा गया खुद अपनों से ही तो,
कइयों को तू लहूलुहान कर बैठा।
अपने घमंड में कहीं कहीं तो,
तू आग की चिंगारी भी बन बैठा।।
कहीं तू राहों में शिलाएं बनकर,
कहीं तू कंकड़ पत्थर बन बैठा।
कहीं तू उम्र भर कीचड़ में पड़ा रहा,
कहीं कहीं तू पर्वत बन बैठा।।
इंसान भी ऐसा ही पत्थर जैसा,
कहीं वो दयालु बन बैठा।
कहीं कहीं घमंड के कारण,
वो निर्मम हत्यारा क्यों बन बैठा।
हे पत्थर तू क्या क्या बन बैठा?
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।