शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता- हे! माटी हम तेरी संतान बनें
हे! माटी हम तेरी संतान बनें
तन को पवित्र करने वाली हे! माटी,
तुम हमारी माता,हम तुम्हारे पुत्र बनें।
तेरे आंचल को स्वच्छ रखें सदा हम,
हे! माटी सदा ऐसी हम तेरी संतान बनें।।
तेरे अन्न से तन बना हमारा,
बंजर न तुझको हम रखें।
हरा भरा सदा रखें तुझे हम,
हे! माटी सदा ऐसी हम तेरी संतान बनें।।
कितना देती हो तुम अपने पुत्रों को,
फिर भी चुपचाप सब कुछ सहे।
तेरी सेवा में हे! माटी अब हम,
जीवन अपना बलिदान करें।
हे! माटी सदा ऐसी हम तेरी संतान बनें।।
करेंगे हिफाजत तेरी सदा हम,
ऐसा मन में विश्वास भरें।
तू ही न होगी माटी इस जगत में तो,
व्यर्थ जीवन का भला हम क्या करें।
हे! माटी सदा ऐसी हम तेरी संतान बनें।।
तुझमें जनम तुझमें मरण हो हमारा,
यही प्रभु!से हम वंदन करें।
तुझमें लिपटकर अंत हो जाए हमारा,
तो इस जगत में अमर हम बने।
हे! माटी सदा ऐसी हम तेरी संतान बनें।।
संतान बनें, संतान बनें।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर रचना?
बहुत सुन्दर रचना????