शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता-मेरे शब्द
मेरे शब्द
मैं अपने शब्दों को लिख चुका हूं,
क्या कोई, मेरे शब्द सुन सकेगा।
फंसा हूं क्यों शब्दों के जाल में, मैं।
शब्द कोई क्या,मेरे गा सकेगा।।
लिख चुका मधुर स्वर शब्दों को मैं,
क्या कोई शब्दों की मिठास पा सकेगा।
लिख तो दिए थे हृदय से मैंने,
शब्द हृदय में किसी के क्या छप सकेगा।।
घोल चुका मधुर रस शब्दों में मैं,
कोई क्या रस पान कर सकेगा।
पिरो तो दिया था शब्दों को हृदय से मैंने,
कोई क्या मेरे शब्द पिरो सकेगा।।
बहेगी जब रसधार स्वरों की यहां,
मधुर स्वर क्या कोई गा सकेगा।
आए हैं कुछ पलों के लिए हम यहां,
क्या कोई मधुर पल याद कर सकेगा।।
यकीन हो चला अब मुझे यहां,
शायद कोई मेरे बीते पल गा सकेगा।
गा सकेगा, गा सकेगा, गा सकेगा।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।