कार्तिक पूर्णिमा में घर पर करें गंगा मैया का स्नान, जानिए राशि के अनुसार कैसे करें दान
इस बार कार्तिक पूर्णिमा का स्नान 30 नवंबर को है। इस दिन अधिकांश शहरों और जिलों में नदियों और घाटों में कोरोना महामारी के चलते स्नान पर प्रतिबंध हैं। ऐसे में श्रद्धालु निराश न हों। वे घर में ही मां गंगा के स्नान के बराबर का पुण्य लाभ ले सकते हैं। यहां डॉ. आचार्य सुशांत राज बता रहे हैं इस दिन स्नान का महत्व, कार्तिक पूर्णिका का शुभ मुहूर्त और इस पर्व से जुड़ी मान्यताएं।
गंगा स्नान का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान और दान करना दस यज्ञों के समान पुण्यकारी माना जाता है। शास्त्रों में इसे महापुनीत पर्व कहा गया है। कार्तिक पूर्णिमा भरणी और रोहिणी नक्षत्र में होने से इसका महत्व और बढ़ जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही देव दीपावली भी मनाई जाती है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा कहलाती है। इस दिन गंगा स्नान, दीपदान, यज्ञ और ईश्वर की उपासना की जाती है।
दान का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान और दान का विशेष महत्व है। कोरोना वायरस महामारी के कारण ऐसे समय में घर में ही गंगाजल मिलाकर स्नान करना उत्तम है। इस दिन दान का भी बहुत महत्व है। कहते हैं कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन दान करने का हजारों गुणा फल मिलता है। इसलिए इस दिन गरीबों को गर्म कपड़ों, गर्म चीजों का दान किया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन किए गए दान से विष्णु भगवान की विशेष कृपा मिलती है।
राशि अनुसार करें दान
मेष-गुड़ का दान
वृष- गर्म कपड़ों का दान
मिथुन-मूंग की दाल का दान
कर्क-चावलों का दान
सिंह-गेहूं का दान
कन्या-हरे रंग का चारा
तुला भोजन का दान
वृश्चिकृ- गुड़ और चना का दान
धनु-गर्म खाने की चीजें, जैसे बाजरा,
मकर-कंबल का दान
कुंभ-काली उड़द की दाल
मीन- हल्दी और बेसन की मिठाई का दान
ये हैं मान्यताएं
इस दिन किए जाने वाले दान-पुण्य समेत कई धार्मिक कार्य विशेष फलदायी होते हैं। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा की संध्या पर भगवान विष्णु का मत्स्यावतार हुआ था। एक अन्य मान्यता के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन महादेव ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था, इसलिए इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस बार कार्तिक पूर्णिमा 30 नवंबर को सोमवार के दिन है।
पूजन विध
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी में स्नान करें। मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। अगर पवित्र नदी में स्नान करना संभव नहीं तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
- रात्रि के समय विधि-विधान से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करें।
- सत्यनारायण की कथा पढ़ें, सुनें और सुनाएं।
- भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की आरती उतारने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें।
- घर के अंदर और बाहर दीपक जलाएं।
- घर के सभी सदस्यों में प्रसाद वितरण करें।
- इस दिन दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है. किसी ब्राह्मण या निर्धन व्यक्ति को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान और भेंट देकर विदा करें।
- कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर दीपदान करना भी बेहद शुभ माना जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त
कार्तिक पूर्णिमा की तिथि- 30 नवंबर
पूर्णिमा तिथि आरंभ- 29 नवंबर को रात 12 बजकर 49 मिनट से आरंभ
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 30 नवंबर को दोपहर 3 बजे तक
इस बात का रखें ख्याल
इस बात का ध्यान रहे कि यह उपच्छाया ग्रहण वास्तव में चंद्रग्रहण नही होता। इस उपच्छाया ग्रहण की समयावधि में चंद्रमा की चांदनी में केवल धुन्धलापन आ जाता है। इस उपच्छाया ग्रहण के सूतक स्नानदानादि माहात्म्य का विचार भी नही होगा।
भारत सहित यह उपच्छाया अधिकतर यूरोप, एशिया, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण-पश्चिमी दक्षिण अमरीका (पूवी ब्राजील, उर्गवे, पूर्वी अर्जन्टीना), प्रशांत तथा हिन्द महासागर आदि क्षेत्रो में दिखाई देगा।
तृतीय उपच्छाया ग्रहण (30 नवम्बर 2020 ई. सोमवार)- भारत के उत्तर, उत्तर-पश्चिमी, मध्य, दक्षिण प्रांतों में यह उपच्छाया दिखाई नही देगी। शेष उत्तर-पूर्वी, मध्य-पूर्वी भारत में जहां चंद्रोदय सांय 17 घंटे-23 मिनट से पहले होगा, वहां यह उपच्छाया ग्रस्तोदय रूप में दृश्य होगी। अर्थात जब चंद्रोदय होगा, तब छाया चल रही होगी। भारत, ईराक, अफगानिस्तान को छोडकर), इंग्लैण्ड, आयरलैण्ड, नार्वे, उत्तर-स्वीडन ,उत्तरी-फिनलैण्ड, आॅस्ट्रेलिया, उत्तरी अमरीका, दक्षिणी अमरीका तथा प्रशांत महासागर में दिखाई देगा। इसके स्पर्श आदि का समय इस प्रकार होगा-
स्पर्श, मध्य, मोक्ष
इस उपच्छाया ग्रहण के स्नान, सूतकादि का विचार नही होगा। पूर्णिमा संबंधी सभी धर्मिक कृत्य जैसे-व्रत, उपवास, दान, सत्यानारायण व्रत-पूजन आदि तो निःसंकोच होकर करने ही चाहिएं।
ध्यान रहे, भारतीय ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में भी इस उपच्छाया या धुंधलेपन का धार्मिक महत्व नहीं बतलाया गया है। उपच्छाया ग्रहण में न तो अन्य पूर्ण अथवा खण्डग्रास ग्रहणों की भांति पृथ्वी पर उनकी काली छाया पडती है, न ही सौरपिंडों (सूर्य-चंद्र) की भांति उनका वर्ण काला होता है। केवल चंद्रमा की आकृति में उसका प्रकाश कुछ धुंधला सा हो जाता है।
आचार्य का परिचय
नाम डॉ. आचार्य सुशांत राज
इंद्रेश्वर शिव मंदिर व नवग्रह शनि मंदिर
डांडी गढ़ी कैंट, निकट पोस्ट आफिस, देहरादून, उत्तराखंड।
मो. 9412950046
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।