जगह-जगह है वतन की खुशबू। महक रही है हवन की खुशबू।। जरा सी चूमें जो लब वो हमने। बदन में...
लक्ष्मी प्रसाद बडोनी
रात भर मुझको सोचना छोड़ो। दिन में ख्वाबों को देखना छोड़ो।। दूर ही दूर होते जाओगे। दरमियां कुछ तो फासला...
सोचकर देखा बारहा खुद को। फिर किया हमने आइना खुद को।। मैकदे से निकलते देखा है। कह रहा था जो...
ताले की चाबी रक्खी है। कितनी खुशफहमी रक्खी है।। तुमने यारब मन में अपने। भर कितनी तल्खी रक्खी है।। अपना...
सोया नसीब यूं कि जगाया न जा सका। फिर भी खुदा से अपना भरोसा न जा सका।। दिन-रात मांगते रहे...
कब तक खुद को समझाएंगे। ऐसे तो हम मर जाएंगे।। झूठे ख्वाबों से यारो हम। यूं कब तक मन बहलाएंगे।।...
दिल का पुर्जा पुर्जा पढ़ना। सहरा को अब दरिया पढ़ना।। दुनिया का जब नक्शा पढ़ना। अपना-अपना किस्सा पढ़ना।। खा सकता...
किस कदर मैला हुआ है।ये बदन पहना हुआ है।। गूंजती इसमें अजानें।दिल मेरा मक्का हुआ है।। क्या कहें किससे कहें...
रोटियां दे भाषणों से पेट कब किसका भरा।बाज आ जा हरकतों से देखता होगा खुदा।। आदमी दुश्मन बना है आदमी...
नफरतों के बयान रहने दो।कुछ तो अम्नो-अमान रहने दो।। कल सियासत के काम आएंगे।ये सुलगते मकान रहने दो।। है वतन...