वो यूँ खुद को अक्सर दिखाते हुए भी खुद को छिपाता है कर अपनी ग्लानि को वो प्रत्यक्ष हमें बहुत...
युवा कवयित्री अंजली चंद की कविता-एक सफ़र ही तो है
डर और उम्मीद डर उसके चले जाने का उम्मीद उसके ठहर जाने की डर उसे खो देने का उम्मीद उसे...
बस! देखते-देखते ये साल भी गुज़र गया देखने सुनने और समझने में ये साल भी गुजर गया, गुज़र गया लम्हा...
बात ना करने की वजह पूछी तो पता चला अब उसे आदत नहीं रही, हाँ अजीब सी एक आदत बन...
एक सफ़र ही तो है, अनजानी सी राहों का, किसी की यादों का, किसी की बातों का, किसी की आँखों...