काश चरित्र को पवित्र करने का भी कोई इत्र होता फिर से दोहरा पाता उन कोशिशों को जो नाकाम रही...
युवा कवयित्री अंजली चंद की कविता-एक सफ़र ही तो है
जिन्दगी की राह चाह से अलग हो गई हर नाकाम चाह का डर खत्म हो गया मचलती इच्छाएं ख़त्म हो...
आंखों से बहा आंसु नहीं होता महज़ पानी होता है असहनीय पीढ़ा का आंखों से छलक जाना होता है भावनाओं...
मैं और मेरी तन्हाई आख़िर में साथ आ ही जाती हैं, मैं अगर थोड़ा सा दूर हो जाऊं ख़ुद से,...
वक्त कैसा भी हो गुज़र ही जाता है दर्द कैसा भी हो रह ही जाता है, ज़ख्म कैसा भी हो...
हम दोनों को हम दोनों जैसे बहुत मिलेंगे, बस हम ही एक दूजे को ना मिल पायेंगे, सफ़र करते करते...
कुछ एक थे जो पुराने किस्सों में बर्बादी हमारी लिख गये आज उन किस्सों के कुछ हिस्सों को बयां करते...
मन बहुत बैचैन है कुछ ऐसा ढूँढ रहा है जो खो गया है खोया क्या है ये मालूम नही जीवन...
लफ्जों की हेर - फ़ेर भी गज़ब हैं, कागज़ में आग का समुन्दर छिपा देती है, स्थिरप्रज्ञ बनना ही तो...