प्यासा तेरे द्वार पर अपनी आन बान और शान पर नित, सागर क्यूं इठलाए। प्यासा तेरे द्वार पर, प्यासा ही...
डॉ. पुष्पा खंडूरी की कविता-श्राद्ध मात्र एक परम्परा नहीं
मेरे दिल में बस तू ही तू चुपचाप बसा होता है। जैसे सबकी आँखों से छिपा कंजूस का धन होता...
मैं ख़ुश हूं बहुत कि अपनी ख़ुशी की, अब मैं स्वयं ही तलबगार हूं मुझे चाहत नहीं अब तेरे प्यार...
अक्षर साधकों की कल्पना , अक्सर धारण कर अंगवस्त्र शब्दों का। ओढ़ भावों की चुनरियाँ, भर लेती उपमान गगरिया, छलकाती...
प्रभु कैसे तेरा आभार जताऊँ। बस संग तुम्हारो नीको लागे, जगत ये तुम बिन फीको लागे। तुमसे दूरी पर कैसे...
होली के रंग होल्यारों के संग, समय के रंग जीवन के संग। फूलों के रंग डाली के संग, डाली की...
मेरी कविता में आना श्री राम! मेरी कविता में आना। मेरी कविता बनें गीता- ज्ञान, मेरी कविता में आना॥ कविता...
ख्वाब देखना तो हसरत है इन आंखों की। पर हर ख्वाब ही मुकम्मल हो जाए ये ज़रूरी तो नहीं॥ बहुत...
तू और तेरी जिंदगी क्या एक सपने से ज्यादा ये जीवन कुछ भी नहीं यहां हाँ ! कल ही नींद...
श्राद्ध श्राद्ध मात्र एक परम्परा नहीं सम्मान है हमारे दिवंगतों का श्राद्ध हमें सिखाता है कि माता - पिता हमारी...