Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

November 9, 2025

गढ़वाली गजल

कबि-कबि कबि-कबि एक-हैंका धोऽर, आंद-जांद रावा. अपड़ि खैरी-खुशि-बिपत, सब्यूं सुणांद रावा.. ज्यू हळ्कु ह्वे जांद, सूणीं-सुणैकी क्वी बात, कबि अपणौं,...

कोरोना से उपजी परिस्थितियों को लेकर इस गजल-बगत कनु यु सगत आई, की रचना उत्तराखंड के मदन ढुकलान ने की।...

ब्यो-काजा लग्न गुम- सुम हुयूं सरग, न बरखणूं- अखरणूं च, चौदिसौं बुजिना लग्यां, न सरकणूं-फरकणूं च.. दिनम चुड़ापटी घाम, ब्यखुनिदां...

लेखणु-पढ़णु लेखि- पैड़िक - मनखि, उतीरण-ह्वे जांद. सीखि-सीखी, काम-काजा परवीण-ह्वे जांद.. पढ़णा-लेखड़ा कि बल, क्वी उमर नि हूंदि. पुस्तैनी हुनर...