हम बदल रहे हैं हम कैसे अब बदल रहे हैं मर्यादाएँ तोड़ रहे हैं। भौतिकता में भटक रहे हैं चरित्र...
कविता
लोकतंत्र है यह कैसा? जहां चले बस तानाशाही और पैसा, मांगते जो चुनाव में वोट… छापते फिर उसपर नोट। लोकमत...
मनोभाव सोचता हूँ मैं भी अक्सर कुछ ऐसा अब कर जाऊँ । ऋषयों की भाँति मैं भी परमतत्व को जान...
यह दक्खण पंथ भी देख लिया जी ! न चुनाव हुए - न राजा हारे, बिना जंग 'सूबे' दार हैं...
मैं कवि नहीं मैं कवि नहीं फिर भी, कुछ मन की बातें लिख लेता हूं। कभी कभी कोरे पन्नों पर,...
मैं एक नारी हूँ अपने हालतों पर भारी हूँ जलायी गई हूँ कई बार आग में फिर भी न हुई...
माटी पुष्प, अश्रु, नारी की कहानी हे! माटी तेरी भी क्या अजब कहानी, धरती पर ही तुझको हरियाली लानी। कितना...
अस्तित्व पहाड़ का पानी यहां की जवानी अपने अस्तित्व को लेकर अभी भी तरस रही है क्योंकि- पहाड़ ने कभी...
पनघट (धारे) मुझको तो मेरे गांव के ही, पनघट (धारे) प्यारे लगते हैं। गर्मी वर्षा आंधी हो या तूफान, अविरल...
पुष्प कहे माली से पुष्प कहे माली सेआज, तेरा मेरा अंत नहीं। टूट भी जाऊं डाली से तो, मेरे जीवन...