हे! माटी हम तेरी संतान बनें तन को पवित्र करने वाली हे! माटी, तुम हमारी माता,हम तुम्हारे पुत्र बनें। तेरे...
कविता
देख रही है प्रिय धरा निरंतर ! फाख्ता गौरैया ग्लैडोलिया, गेंदा गुड़हल गुलदाऊदी। हरित क्षेत्र सम्मुख सुरपर्वत, पुष्प पर्ण सुरभित...
मैं सड़क हूं मैं सड़क हूं,कई बार बनती, कई बार टूटती। मैंने तुम्हें अपनों से जोड़ा, लेकिन क्यों लोगों ने,...
पथ पर चलता जा हे पथिक! तू निर्भय होकर पथ पर अपने बढ़ता चल। राहों में कर रहीं इन्तजार ठोकरें...
जाग जा हे! पथिक रात का घना अंधेरा, सुनसान सड़को पर राही गुम हो गए। जाग जा हे! पथिक, अब...
परिंदों का आशियाना मेरे मृदुल वन में जब, परिंदों की गुंजन होती है। हृदय खुश हो जाता तब, उनकी जब...
पिता ऊँगली पकड़ कर चलना उन्होंने सिखाया बुरे अच्छे में फ़र्क करना भी उन्होंने सिखाया। दुसरो की खुशिओ को तबज्जू...
न निकले आंसू बेवजह आज दूरियां बनी है दिलों में, देख रहा मैं चारों ओर से। मैं तो बंधा रहूंगा...
बीती यादें कुछ यादें छोड़ पीछे, ये दौर भी गुजर जाएगा। शायद यकीन है मुझे, फिर से जहान मुस्कुराएगा।। दुखी...
न जानें इंसान क्यों बदल गया न धरती बदली, न आसमान बदला। न चांद बदला, न सूरज बदला। न तारे...