मुफ्त राशन पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, कहा- कब तक मुफ्त राशन बांटेगी सरकार, रोजगार के मौके क्यों नहीं पैदा करते
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के मुफ्त राशन बांटने पर सख्त टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा- कब तक ऐसे मुफ्त राशन बांटा जाएगा। सरकार रोजगार के अवसर क्यों नहीं पैदा कर रही? केंद्र ने अदालत को बताया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत 81 करोड़ लोगों को मुफ्त या रियायती राशन दिया जा रहा है। बेंच ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा, इसका मतलब है कि केवल करदाता ही इससे बाहर हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस मनमोहन की बेंच ई-श्रम पोर्टल के तहत पात्र पाए गए प्रवासी श्रमिकों और अकुशल मजदूरों को मुफ्त राशन कार्ड दिए जाने से संबंधित मामले पर सुनवाई कर रही थी। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों द्वारा मुफ्त सुविधाओं की वितरण नीति पर गंभीर सवाल उठाए। अदालत ने कहा कि “फ्री की रेवड़ी” कब तक बांटी जाएगी। साथ ही कहा कि क्या अब समय नहीं आ गया है कि सरकारें रोजगार के अवसरों पर ध्यान दें। कोर्ट ने खासकर कोविड महामारी के बाद प्रवासी मजदूरों को दी जा रही मुफ्त राशन की सुविधा को लेकर चिंता जताई और सुझाव दिया कि इस समस्या का स्थायी समाधान रोजगार के अवसरों के निर्माण और कौशल विकास में है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि सरकार ने कोरोना महामारी के दौरान और इसके बाद गरीबों को मुफ्त राशन मुहैया कराया। हालांकि, इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने हैरान होते हुए सवाल किया कि इसका मतलब है कि सिर्फ टैक्सपेयर्स ही बाकी बचे हैं। कोर्ट ने यह सवाल उठाया कि आखिरकार क्या यह प्रक्रिया हमेशा जारी रहेगी? क्या सरकार को मुफ्त राशन देने की बजाय रोजगार के अवसर प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए? (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यह पूरा मामला राशन कार्ड से जुड़ा है। एक NGO की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण की मांग है कि ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्टर्ड सभी प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त राशन प्रदान करने के लिए निर्देश जारी किए जाएं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस मामले की अब तक जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ सुनवाई कर रही थी। बेंच ने 4 अक्टूबर को आदेश दिया कि “ऐसे सभी व्यक्ति जो पात्र हैं (एनएफएसए के अनुसार राशन कार्ड/खाद्यान्न के लिए पात्र) और संबंधित राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा उनकी पहचान की गई है, उन्हें 19 नवंबर से पहले राशन कार्ड जारी किए जाने चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
26 नवंबर को केंद्र सरकार ने जवाब दाखिल करते हुए कहा कि उनका दायित्व केवल राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की अनिवार्य व्यवस्था के तहत राशन कार्ड प्रदान करना है। इसलिए, वे कानून में प्रदान की गई ऊपरी सीमा का उल्लंघन करते हुए राशन कार्ड प्रदान नहीं कर सकते। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सीधे तौर पर प्रवासी मजदूरों से जुड़े एक मामले में वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि “ई-श्रमिक” पोर्टल पर पंजीकृत मजदूरों को मुफ्त राशन मिलना चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुफ्त राशन देने के बजाय हमें इन मजदूरों के लिए रोजगार के मौके और कौशल निर्माण पर काम करना चाहिए। कोर्ट ने कहा, “फ्रीबीज़ कब तक दिए जाएंगे? क्यों न हम इन प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार के अवसर, रोजगार और क्षमता निर्माण पर काम करें?” कोर्ट ने जोर देते हुए कहा कि राशन का वितरण एक अस्थायी समाधान हो सकता है, जबकि रोजगार और कौशल विकास से एक स्थायी समाधान मिलेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आंकड़े 2011 की जनगणना के आधार पर 9 दिसंबर की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील भूषण ने कहा कि यदि जनगणना 2021 में की गई होती, तो प्रवासी श्रमिकों की संख्या में वृद्धि होती, क्योंकि केंद्र वर्तमान में 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर निर्भर है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पीठ ने कहा, हमें केंद्र और राज्यों के बीच विभाजन नहीं करना चाहिए, अन्यथा यह बहुत मुश्किल होगा। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि, मुफ्त राशन की योजना कोविड के समय से है। उस समय इस अदालत ने प्रवासी श्रमिकों के सामने आने वाले संकट को देखते हुए। उन्हें राहत प्रदान करने के लिए कमोबेश दैनिक आधार पर यह आदेश पारित किए थे, लेकिन सरकार 2013 के अधिनियम से बंधी हुई है और वैधानिक योजना से आगे नहीं जा सकती। इस मामले पर अगली सुनवाई 8 जनवरी को होगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कोर्ट ने इस बात पर भी टिप्पणी की कि यदि राज्य सरकारों को आदेश दिया जाता है कि वे सभी प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन दें, तो वे इसे केंद्र सरकार की जिम्मेदारी मानते हुए कार्रवाई करने से बच सकते हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि जैसे ही हम राज्यों को आदेश देंगे कि वे सभी प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन दें, कोई भी यहां नहीं दिखाई देगा। वे भाग जाएंगे। राज्यों को यह पता है कि यह जिम्मेदारी केंद्र की है, इसीलिए वे राशन कार्ड जारी कर सकते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि केंद्र अभी भी 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर निर्भर है, जबकि 2021 की जनगणना होनी चाहिए थी। उनका कहना था कि इससे प्रवासी मजदूरों की सही संख्या और उनकी वास्तविक जरूरतों का पता नहीं चल पा रहा है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर कहा कि हम केंद्र और राज्यों के बीच मतभेद नहीं पैदा करें, क्योंकि ऐसा करने से स्थिति और भी जटिल हो जाएगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह निर्देश दिया कि वे प्रवासी मजदूरों के लिए राशन कार्ड जारी करने की प्रक्रिया को तेजी से पूरा करें। इस प्रक्रिया से मजदूरों को केंद्र की मुफ्त राशन योजनाओं का लाभ मिलेगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकारों को अपनी जिम्मेदारियों से भागने की बजाय प्रवासी मजदूरों के लिए दीर्घकालिक समाधान प्रदान करने पर ध्यान देना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अंत में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर काम करना होगा ताकि प्रवासी मजदूरों की समस्याओं का स्थायी समाधान निकाला जा सके। अदालत ने कहा कि सरकार को रोजगार और कौशल निर्माण पर ध्यान देना चाहिए ताकि प्रवासी मजदूरों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके और वे मुफ्त राशन पर निर्भर न रहें।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।