मुख्य चुनाव आयुक्त को लेकर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी, कहा-जमीनी स्थिति खतरनाक, मजबूत चरित्र वाला चाहिए सीईसी

देश के मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसे पदों पर बेहतर छवि वाले और गैर राजनीतिक व्यक्ति की नियुक्ति की जानी चाहिए। इसमें पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए, ताकि बिना किसी प्रभाव के स्वतंत्र फैसले लिए जा सकें। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि संविधान ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्तों के नाजुक कंधों पर बहुत जिम्मेदारियां सौंपी हैं और वह मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर टीएन शेषन की तरह के सुदृढ़ चरित्र वाले व्यक्ति को चाहता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रणाली में सुधार की मांग वाली एक याचिका पर न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही थी। इस पीठ में जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि उसका प्रयास एक प्रणाली को स्थापित करना है ताकि “सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति” को सीईसी के रूप में चुना जा सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अदालत ने कहा कि अब तक कई सीईसी रहे हैं, मगर टीएन शेषन जैसा कोई कभी-कभार ही होता है। हम नहीं चाहते कि कोई उन्हें ध्वस्त करे। तीन लोगों (सीईसी और दो चुनाव आयुक्तों) के नाजुक कंधों पर बड़ी शक्ति निहित है। हमें सीईसी के पद के लिए सबसे अच्छा व्यक्ति खोजना होगा। अदालत ने केंद्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा कि महत्वपूर्ण यह है कि हम काफी अच्छी प्रक्रिया अपनाएं। ताकि सक्षमता के अलावा मजबूत चरित्र वाले व्यक्ति को सीईसी के रूप में नियुक्त किया जा सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सरकार के वकील ने कहा कि सरकार योग्य व्यक्ति की नियुक्ति का विरोध नहीं करने जा रही है, लेकिन सवाल यह है कि यह कैसे हो सकता है। उन्होंने कहा, “संविधान में कोई रिक्तता नहीं है। वर्तमान में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर की जाती है। पीठ ने कहा कि 1990 के बाद से भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी सहित कई आवाजों ने चुनाव आयोग सहित संवैधानिक निकायों में नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग की है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अदालत ने कहा कि लोकतंत्र संविधान का एक बुनियादी ढांचा है। इस पर कोई बहस नहीं है। हम संसद को भी कुछ करने के लिए नहीं कह सकते हैं और हम ऐसा नहीं करेंगे। हम सिर्फ उस मुद्दे के लिए कुछ करना चाहते हैं, जो 1990 से उठाया जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि जमीनी स्थिति चिंताजनक है। हम जानते हैं कि सत्ता पक्ष की ओर से विरोध होगा और हमें मौजूदा व्यवस्था से आगे नहीं जाने दिया जाएगा। अदालत ने साथ ही कहा कि वह यह नहीं कह सकती कि वह असहाय है।

Bhanu Prakash
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भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
There should not be any interception by the judiciary in administration.There juridictions are seperate otherwise there will be clashes and Govt may not function smoothly as I feel